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मुनिसकेउवा
घरिणिवसुंधरिय परिपालेकितावासबकिरिमा मुणिवरुसुकेना स्वर्गदेवाजातः
मुडविको मुणमनसमसयावरथालिंगद्पणिणुणिरुव मिम तेलुजेस
रुहस्तासापयासम्म मालकियर
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महासुरापातसहिम हारिस्पुण 0069लकारामहाकमुष्यी यतातरमहासत्तरहाणमपिएमहाकवाSHAR
मरिणागदन्तसुके कक्षा सर्वनामएकतासमोपरिचयसम्माठिशाचावलडाडलखोणिमंडलुलियाकिति पसरस्म खंडणसमंसमसीसियाएकइपोमलहति कवकीना निसुरासुरविज्ञाहरसरणे या साणणासिसमवसरण गुरणपालनिणिर्दामाणिनी जमविपाविसुंदरियाणठीली दविसुलाया
वसुन्धरा ने दीक्षा ग्रहण कर ली। षड् आवश्यक क्रियाओं का परिपालन कर मुनिवर सुकेतु विधुरगृह में मरकर श्रेष्ठ स्वर्ग में उत्पन्न हुआ। उसकी पत्नी वसुन्धरा भी स्त्रीलिंग का उच्छेद कर उसी स्वर्ग में अनुपम देव हुई, सम्यक्त्व से अलंकृत स्त्रियों में, वीतरागों को प्रणाम करनेवाली।
घत्ता-भव्यजीव भरत के पिता के द्वारा विज्ञापित अन्तिम छह नरकों, भवनवासी और व्यन्तरवासी देवों के विमानों में जन्म नहीं लेते ॥२९॥
इस प्रकार त्रेसठ महापुरुषों के गुण-अलंकारों से युक्त महापुराण में महाकवि पुष्यदन्त द्वारा विरचित और महाभव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य का वणिक् नागदत्त और सुकेतु कथा
सम्बन्ध नाम का इकतीसवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ॥३१॥
सन्धि ३२ मनुष्यों, सुरों, असुरों और विद्याधरों के लिए शरणस्वरूप समोशरण में विराजमान गुणपाल जिनेन्द्र ने जो कहा था और जिसे मैंने और तुमने सुना था
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