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रगडनुकहाण तबजराहिम अहिणाणमन्मजएणपुहिनालास सिरिवालहोकेरागुणसंतशतेनुए कुवरश्रीपासिव
चारुचडरिकिणिवरेघरसोहानिजियसुरवरघर सीसिरियादव नपालुवायजा
सुपालभरसहसभिवसरणससरुसुरेसाताचितिउजवरसिरिए मायएपिसमुहक्कहस्मयावायएचासइसबुलावसवियारनाया। मदासश्माकमहारठ अप्पविसावरपिनसायरु तेनिजियचंद दिवाया गयदेमिवितेषणरविणाया किंजाणऊविहायसिविना या एकतणतिहवामठलाजए फंदशसुहिदसणसंपामा हिना
वएप्रमुहाइपमाश्चाताम्बसुमुधणयानुपाया सोप सपश्मटाणवियारहरु सुणिसामिणिकेवालयासाधलागुणवालदेउसुरपरिवरिट उमाणेमहारिसि अवयरिश अमेवितिर्दियन्त्रिदियन आणवसणनिमीलियोनल जोकवरपिरजायनमुर णिवा सोभामटारसायरुतंनिसणेविदेविरामचिन विलिवत्रमारसोदेसिंचिया वंदणद्धा शिगयपरमेसरिहाईहयगयलालामयसरि वलिमखंदरचाश्यसंदण श्रपथविमिविनंदणाविडते दिलवणेविहदायत सदखसहखकोमलवडपाया पहाडिठजडिवङयणहि संघठणाणा।। ३० हयाणवनाहि तहानलजरकुनामजगपाल अवहनिदलिटनरवरमेलाधिमाजिगपालमारिदौ
घत्ता-वह कहता है-हे स्वामिनी सुनिए ! कामदेव के विकार का नाश करनेवाले केवलज्ञान के धारी, महाऋषि गुणपाल देवताओं से घिरे हुए उद्यान में अवतरित हुए हैं ॥१॥
हे देवि सुलोचने ! उस बीते हुए कथानक को मेरे अभिज्ञान के लिए कहिए।
इस प्रकार सती सुलोचना, जयकुमार के पूछने पर श्रीपाल की गुण-परम्परा का कथन करती है। अपने घरों की शोभा से इन्द्र के विमानों को जीतनेवाले सुन्दर पुण्डरीकिणी नगर में श्रीपाल राजा वसुपाल के साथ इस प्रकार रहता था मानो इन्द्र देवों के साथ रहता हो। इस बीच कुबेर श्री माता ने विचार किया और अपने मुख-गह्वर से निकलनेवाली वाणी से कहा-'सब लोग भावपूर्ण दिखाई देते हैं। अकेला मेरा स्वामी दिखाई नहीं देता। और एक दूसरा मेरा वह भाई कुबेरप्रिय कि जिसने अपने तेज से चन्द्रमा और सूर्य को जीत लिया है। वे दोनों गये और फिर लौटकर नहीं आये। क्या जाने वे मोक्ष चले गये?' ऐसा कहते हुए उसका सुधीजन को मिलानेवाला बायाँ नेत्र फड़क उठा। उसके हृदय में परम-उत्साह नहीं समा सका। इतने में वनपाल सामने आ पहुंचा।
वहाँ पर एक और तीन गुप्तियों से युक्त तथा ध्यान के कारण निमीलित नेत्र, जो कुबेरप्रिय मुनि हुआ था, वह तुम्हारा भाई आया है। यह सुनकर देवी रोमांचित हो उठी। मानो अमृत रस से लता को सींच दिया गया हो। वह परमेश्वरी वन्दना-भक्ति के लिए गयी। अश्वों और गजों की लार और मद की नदी बह गयो। दूसरे रास्ते से दोनों सुन्दर पुत्र चले, जिन्होंने रथ प्रेरित किया (हाँका) था ऐसे उन्होंने उपवन में कोमल वट का वृक्ष देखा जो घाम को नष्ट करनेवाला, दलों और फलों से लदा हुआ था। वहाँ पत्थर से निर्मित अनेक रत्नों से जड़ा हुआ, मनुष्यों के द्वारा बुधजनों के वचनों से संस्तुत जगपाल नाम के यक्ष और मनुष्यों के मेले को देखा।
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