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हिनिदेविसिरेरिखकरहिं अलकनाश्यशेजहितवान
अष्टिप्रतिसना हिसंघाश्या वडनिवअमरिस्पहिया पपायविरविनि
विभावणासव
चोट यहिम सोसणश्काश्मइंदामकिन हासपिसायगाधम्माह उमद्यपदनुपरहवाशसहितधापकलनविरणिधाण रायहासिलमश्तेतासिटपणवेविसबवपश्वदाकुलस्लचिङ वरसिरि नवसामविगरविनिययसिरि गउत्तहिंजबिहकर सवशमठलिसकरुसोपविभववशतापिसुणकवडणविमक्किन मध्यावकिपडकिट खमहि वाझमिट कसताडहिंकिलामिटर वर्णिलपश्चराइठकम्यमद्धानिकारागजकश्वसित इनमश्चप्परिमवरुधरम्तिंभासमिण्वहितउकरवि पिउणिविससवणहाद्यापिटाचा नाहे पाहवामाणियउ चडालेंग्रहमिवासिदिपालिमयहिंमदिपारिसिहि पुणविषाणचारदा कहिन जिगुणवालंबनसंगहिउ तेवश्संदारिसण्डहियाविणायवानकपसहियादिमाक विरसिरिणदणदो वसपालहोस्तवणार्णदणदोलहाजणणसणिनवरपिनाकिमारकहोकार एकहदिपिन तणविपग्धमुजेसणचि सिवकारणअघुणपरिगणछि निवजाम्बियानि एय
निन्दा कर टक्करों से सिर चकनाचूर कर दिया। अनेक क्रोध से भरे हुए वहाँ पहुँचे जहाँ राजा था। उनका दिव्य क्रोध बहुत बढ़ गया और राजा को पैरों से पकड़कर खींच लिया। राजा कहता है कि मैंने क्या दोष किया ? तब धर्म का हित करनेवाला पिशाचगण बताता है- मुद्रा का प्रपंच, दूसरे का रूप बनाना, परस्त्री से विरत होने पर भी सुधि का बन्धन, गुणीजन का बन्धन और राजा की विभिन्नमति करना। उसने प्रणाम करके सत्यवती को सन्तुष्ट किया। पतिव्रता कुललक्ष्मी कुबेरश्री को शान्त कर अपनी श्री की निन्दा कर राजा वहाँ गया जहाँ सेठ था। हाथ जोड़कर बह राजा कहता है___घत्ता-मैंने दुष्ट के कपट को कल्पना नहीं की थी, मुझ पापी ने दुष्कृत किया है। हे सुभट, क्षमा करें जो मैंने तुम्हारे चित्त को खेद पहुँचाया और कोड़ों के आघातों से तुम्हारे शरीर को सताया ॥१६॥
सेठ कहता है कि यह मेरा पूर्वार्जित कर्म था कि जो तुम अकारण कुपित हुए। अब उस (कर्म) को नष्ट करूँगा, अब मैं तप करूँगा। तुम्हारे प्रति ईर्ष्याभाव धारण नहीं करूंगा। प्रिय कहकर वह अपने भवन ले आया। राजा ने उसे बहुत इष्ट माना। चाण्डाल ने भी मुनियों के द्वारा दी गयी अहिंसा का अष्टमी और चतुर्दशी के दिन पालन किया। फिर चाण्डाल ने चोर (विद्युत् चोर) से कहा कि किस प्रकार गुणपाल ने व्रत ग्रहण किये। उस सेठ ने अपनी कन्या वारिषेणा जो विज्ञान, रूप और लक्षणों से सहित थी, कुबेर श्री के पुत्र भुवन को आनन्द देनेवाले वसुपाल को दे दी। उसके पिता ने कुबेरप्रिय (सेठ) से कहा कि मोक्ष का क्या कारण है, हे प्रिय बताओ! उसने कहा, मैं धर्म को ही शिव का कारण मानता हूँ, अन्य किसी कारण को नहीं गिनता। हे राजन, मैं जाऊँगा और मैं मुनि का चरित्रधारक बनूँगा?
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