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अर्जुनञ्जरिकणीने जाइकरिअर्जु संवोधना।
यरि सामरे विज्ञभोर पहजेदेसे चिरंत उपलखेडग पह ॥ २१॥ सिरिधूम्म नालयिरिणंदिव उप्परमा पुत्तिपिदिय हे मुणिदा हलेसी लिपिय जगसुंदरिमंदरमालिणिय तहि विवाकयान महमद सलव सोखा कंखिपि गुरुपु हिउ चडमिजकिलिहि सुनकर ताक हश्काम मावि वाण जंपाक यसपास तहोतात असुम दरिसा विससा हवामहे चण सोधिन सिहस लगह हे सो होससमुह हिसहरु बरु नावश्क समसा माणव दे कुमु पणि जसरिंद वेष्पिषु गाढा लिंगदेसर म्हपलअण M सश अनुमपडिंडमिंगारधरु नयायन सोबनला रु तेवंदिन निययुरुगरुग्रणु सहियउदविहिगउसनुड ण अंस्किदिजायद जसा समास करतहो । आगामिनं पुष्पससियन त। निजमदिलचणलासिस 13 तर्हि नसरवनिदधुन लग्ननदेविहिपसरतक असते विरह विरोलियउ तेणयठक २०१
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जायाउ तान निहं सारं विडेनवम्ममग्न
माता थी वह कृशोदरी मरकर इस प्राचीन उत्पलखेट नगर में - ॥ २१ ॥
२२
- श्री धर्मपाल राजा को आनन्द देनेवाली अनिन्दिता से पुत्री उत्पन्न हुई। मुनि के दान के फल से मन्दरमालिनी नाम की वह कन्या अत्यन्त सुशील और विश्वसुन्दरी थी। वहाँ उसके विवाह के अवसर पर निग्रह करनेवाले बन्दीगृह से हम लोग मुक्त हो गये। रति से उत्पन्न सुख की इच्छा करनेवाली उन चारों यक्षिणियों ने गुरु से पूछा—'' बताओ- बताओ, संसार में हमारा प्रिय कौन है?" तब काम-मद का नाश करनेवाले वे कहते हैं—“जो चाण्डाल ने संन्यासगति से मरण किया है उसका अर्जुन नाम का सुमति पुत्र हैं। जिसके मुख पर सिंह और बाघ दिखाई देते हैं ऐसी सिद्ध शैल की गुफा में वह अनशन कर रहा है। वह तुम्हारे हृदय का हरण करनेवाला सुन्दर वर होगा, कामदेव के समान ।
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घत्ता - मनुष्य शरीर छोड़कर यक्ष सुरेन्द्र होकर वह तुम्हें प्रगाढ़ आलिंगन देगा और रोमांच उत्पन्न करेगा " ।। २२ ।।
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बकुल चाण्डाल का वह जीव आया और शृंगार धारण करनेवाला अच्युत प्रतीन्द्र हुआ। उसने आकर महान् गुणोंवाले अपने गुरु की वन्दना की और देवियों के साथ पुनः स्वर्ग चला गया। यक्षिणियों ने जाकर यश से उज्ज्वल, संन्यास करते हुए अर्जुन के आगामी पुण्य की प्रशंसा की और उसे बताया कि वे उसकी स्त्रियाँ होंगी। उस अवसर पर वरदत्त नामक वणिक् मनुष्य, अपने हाथ फैलाये हुए देवियों के पीछे लग गया। वे देवियाँ अदृश्य हो गयीं। कामदेव के बाणों से वह धूर्त क्षुब्ध हो गया, विरह की विडम्बना को सहन नहीं करते हुए उसने स्वयं को पर्वत
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