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रेघल्लियद मुननागदत्तचणिवादोसडे सहसविपिसबउदेउडायचा तेवजेणयणादर
सरसकेनवाणिण गहिणितासवगंधार वाहनाढवधरिमार अपविफणिख वाएनवसज्ञतहाकतरासदतसश्साउचलायादाइलवपुकारणादनतणनायसवा
पुरखा हिरण्झकिसिकरहिं अपदिदिपचम्लियपरिणिताहि ददिउँजिग्गजटामा। सियारयणगरिविवश्वासिब पहेजतिएसाङपलोइयल आहारुतायतदादाश्यउससिवयणएपडिवृषिपायहरे उन
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नागदनुरटना,
मागतवनकारित मुणिणासन्निहितकरे दापणतणजणसंथुयायईयच वियवनुयाई गिवाणश्यचित्ताकरवरियाविधि। नाशपवाजोदिमणगणवहा पणशपितसिंदेषणहा गदा घणाकरणहान्नदो अवश्माणिटाकतहादिहरका, वाणिजातणसालमपाणियन कपावितदिल्ल सक्का पिययममईमतराशकाश्यमलहरुझराकरण्डडिया गयणगणाउपल्लस डिया अपनहेकाइविगजिदरानजाण्डवजउवाझम अमलहसाङसाङतापाउ
की चोटी से गिरा लिया। इस प्रकार सेठ नागदत्त का पुत्र मर गया और शीघ्र पिशाचदेव के रूप में उत्पन्न से मिश्रित सुन्दर बघारा हुआ भोजन लेकर जाती हुई उसने रास्ते में एक साधु को देखा। उसने उसके लिए हुआ।
आहार दिया। उस वणिक् के नागघर में चन्द्रमुखी के द्वारा हाथ पर रखा हुआ भोजन मुनि ने कर लिया। घत्ता-उसी नगरी में नयनों को आनन्द देनेवाला सुकेतु नामक वणिक्-पुत्र था। उसकी पत्नी वसुन्धरा उस दान से लोगों के द्वारा संस्तुत पाँच आश्चर्य उत्पन्न हुए। देवताओं ने रत्न बरसाये, रंगबिरंगे और विचित्र । थी। वह वसुन्धरा का पालन करता था॥२३॥
घत्ता-रलों की वर्षा देखकर प्रणयिनी त्रस्त होकर भागी। वह सघन कणोंवाले खेत में जाती है और
अपने पति से कहती है ॥२४॥ २४ वहाँ एक और नागदत्त सेठ रहता था, उसकी सुन्दर नेत्रोंवाली पत्नी सती सुदत्ता थी। उस वणिक्-पुत्र "मैं जो तुम्हारे लिए दही-भात लायी थी, उससे मैंने साधु को सन्तुष्ट कर दिया। किसी ने वहाँ फूल ने लोगों की दृष्टि के लिए आश्रयस्वरूप (सुन्दरता के कारण) एक सुन्दर नाग भवन बनवाया। नगर के बाहर बरसाये, हे प्रियतम! वे मेरे माथे पर गिरे। एक और जगह सुन्दर किरणों से जड़े हुए पत्थर आकाश से गिरे। जहाँ उसका (वसुन्धरा का) पति खेती करता था, दूसरे दिन उसकी पत्नी वहाँ जाती है। दही से गीला, हल्दी एक और जगह भी कुछ गरजा, मैं नहीं जान सकी ! बाजा बजा। एक और जगह 'साधु-साधु' कहा गया,
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