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जश्वरिउंसोतिलिदियहपडणाधरिजसुधरकएकोविपिरिस्कियूनादितिजएगबवलकि यनापडप्रवडवाणिठपराश्यामछियव्हेविसंसरुधान्याचा कर्हिसिणिसबुकहिमरिकरके पाणियसिखिय जीवदाकम्मुसहेज्ञानाचणकिंपिडझना डिलक्सडडडटजेप कहा किमायवणुचितविमइसिरियासरखवश्देहरुकासश्वववश्पडलमुकदश्वयुए। हिंयाएसकगुणवालसवणिमणिहाविगन कदानिमुणेविनयमालेदमियू मश्वतिएसति
यससमिया नया सतणोहारियर तश्याउपटमसंचारिखनजसायसंखझिमेलविठ संवरिया तीसमुनीस्वरते
सलककोडिहियविठ सिरिपालविवाहसवंतवण यस देवदेव्यानरूपण
पालेमकावविजण साचोरुमरविनिवटिउनरण पहिला वीनतीकरण
पडरकतामणिलएचवादियहाहतळहानासरिल बाण
सोयरघावरिल एडअहमिहउसनमुवहम्मिानि पदेवसासिठसहवाबाधवानादेवणसमारित जंजी तरमारिउर्तजशमिजपनियालाई तोकिरोसपलव्हिाण विखमहिसडाराडकहहिदिकविवरक्तिवा
तब उसे तीन दिन के लिए राजा ने रोक लिया। उसने पुत्रों की रक्षा करने के लिए किसी को खोज लिया। नरक का बन्ध कर लिया। जो सागरों की संख्या में थी, वह लाख करोड़ वर्षों में रह गयी। श्रीपाल के विवाह तीसरे दिन आता हुआ-सा दिखाई दिया। राजा से पूछने के लिए सेठ आया, (उसी समय) मक्खी के ऊपर में वसुपाल ने रिसते हुए घाबोंबाले उन दोनों (चाण्डाल और चोर) को मुक्त कर दिया। वह चोर मरकर छिपकली दौड़ी।
भयंकर दुःखों के घर पहले नरक में गया। बहुत दिनों के बाद वहाँ से निकला और वन में कुम्भोदर के घर पत्ता-कहाँ छिपकली और कहाँ मक्खी! कणों को खानेवाली किस प्रकार भक्षित कर ली गयी। जीव में उत्पन्न हुआ। यहाँ रहकर मैं संयम का पालन करता हूँ और जिनदेव के द्वारा कहे गये पर श्रद्धान करता को कर्म सहना पड़ता है और कोई दूसरा नहीं है ॥१७॥ १८
घत्ता-तब देव ने कहा-"जिसे तुमने जन्मान्तर में मारा था, उस यति के जोड़े को देखो, क्या अब सन्तान के लिए सुख दैव करता है, चिन्ता कर माँ-बाप क्यों मरते हैं? सत्यवती का पुत्र श्रीपाल पहला भी तुम उसे क्रोध से देखते हो? ॥१८॥ चक्रवर्ती होगा। दैवज्ञों ने आदेश दिया। गुणपाल श्रमण मुनि होकर चला गया। कथा सुनकर चोर ने शान्ति से अपनी मति को शान्त और संयत किया। उसने अपनी नरकायु हटायो और तीसरे नरक से उसने पहले या क्षमा करते हो? हे आदरणीय | स्फुट कहिए, क्या आज भी वैर अपने मन में धारण करते हो?"
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