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घत्ता-चाण्डाल के द्वारा मुक्त वह तलवार सेठ के गले पर शीघ्र पहुँची और यम की दुती वह खड़गलता श्वेतहारावलि बन गयी ॥१५॥
नेत्रों से राजा ने स्वयं उसे देखा। वह नहीं जान सका कि यह कपटरूप की रचना है। भौंहों की भंगिमा से उसका मुख टेढ़ा हो गया। पृथुधी ने भी घर जाकर राजा के आदेश से, यमशासन से यमदूत के समान, चारित्र्य की महाऋद्धि से सम्पन्न प्रतिमायोग में स्थित सेठ को निकाला। उसे मारने के लिए ले जाया गया। पटहध्वनि से लोगों को इकट्ठा कर लिया। सत्यवती और कुबेर श्री दुःखी होती हैं-हा! सुमेरुपर्वत डिग सकता है? चन्द्रमा उष्ण और सूर्य क्या शीतल हो सकता है ? हा ! क्या धर्म का प्रलय हो गया ? अथवा यद्यपि यह इस प्रकार हो, तब भी उसका भव्य का शील शुद्ध है। उस अवसर पर तलवार को उठाये हुए चण्डाल को यह सौंप दिया गया।
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'साधु' यह कहकर, और पैर पड़ते हुए पुरदेवता ने पद्मासन की रचना की, और उसके लिए मणिमण्डित स्वर्गभूमि तथा प्रातिहार्य श्री का निर्माण किया। निष्करुण जो साधु को मारता है वह पृथुधी भूतों के द्वारा बाँध लिया गया, मत्सर से परिपूर्ण, और दूसरों ने
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