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इयवहमुदपाश्सहिायातायामसवलयविहासिनय सहसाघोसिउमंहासिलए पडिवाहारुगण दियदेपई युद्धक कहलिदिम देदेहिविरुणसुंदरिद मापडदिमंतिणावदन्हि उपाणचा
जाणिनसिरुणिकहितसवैतिपकणालगिउँ परखणहरंगाररसाडियउ मुंहसहेमुङग्याडि राजाकश्यागम
नायक तलिपिवितहिनियमकृविड पारिहिककाठमलियजड साधारपासावि
सरनामुलियसझवश्सासमलडारीसहमा पिहिविदिशलह तरणका
कंचणचवही महारुसमपिर्वधव्होधिताखतुडवरणेही दोवेविसासमंतिनिझवि महिवश्णाश्राणावि तहतसाद वाविठ प्राण्डपवाहितमा
राजारासुचडित पिणिहमणिरासुरायचूडामणि
निनपुरषामारपाका
ढणवणिवरखड़ा हतदद्यमाएपविलप्पियर
वर्ण। सदेतपम्पयपियनासोगितलवमतिहिणाम तिमिविाडहसिया विवाद सिरकमलस्तुणगुहइहातपडतादपिवरुवाहावशाल जश्यकपरिणामविहावियउजश्रडकुंजरसुजाविदाउ तश्य
आग के मुख में मत जाओ॥११॥
घत्ता-तब उस दृष्ट की दुर्वचनों से भर्त्सना कर और अपने मन्त्री को डाँटकर राजा ने वह आभूषण बुलवाया (मँगवाया) और उसे दिलवा दिया।॥१२॥
तब लोहे के बलयों से विभूषित मंजूषा ने घोषणा की कि गत दिवस तुमने हार देना स्वीकार किया था। तुम कठोर-कठोर यह मुझसे क्या कहते हो? सुन्दरी का आभूषण दे दो। हे मन्त्री, तुम नरक की घाटी में मत पड़ो। राजा को आश्चर्य हुआ। उसने अपना माथा पीटा और कहा – क्या कहीं काठ भी बोलता है? मंजूषा का मुँह खोल दिया गया, परधन का हरण करनेवाला नष्ट हो गया। वे तीनों विट उसमें से निकले। स्त्रियों के द्वारा कौन-कौन जड़-बुद्धू नहीं बनाये जाते ? राजा ने सत्यवती से पूछा। शुद्धमति आदरणीय वह स्वीकार करती है जिसे स्वर्णध्वज प्राप्त नहीं है ऐसे अपने भाई पृथुधी को मैंने हार दिया था।
मानिनी का आनन्द बढ़ गया। परन्तु उस राजश्रेष्ठ के मन में क्रोध बढ़ गया। बाद में उसने दण्ड की कल्पना की और इसे सहन न करते हुए उसने कहा- "रखैल, तलवर और मन्त्री का पुत्र ये तीनों दूषितविनय हैं, इन्हें निकाल दिया जाये । मन्त्री के पुत्र का सिर काट लो।" तब वह सेठ सुहावने स्वर में कहता है-"जब मैंने परिणाम का विचार किया था और हाथी को भोजन कराया था,
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