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णिमुणविवमानवलकिट रविनग्नमेजञ्जयलनिरिखिउ पेयालण्यवाहेंपठस्मिन राएंपनी यासिरुचालिघतामाणचितिमतापविला सिणिय लकिटकासकदिहजम्मादवपर जम्मेसईपाचपावगिलिजा हाहासहरुमणरोहिं अय्यापननिदिधणरणाहे वहकारिहलाय. हिरिहर पालमपुरगंधिपहन खखनाठविपनेवि नहउत्सवसावेविसाखि एक्का मेक्कखदाकरपालन्यईवमिविमरवितापवश्यामप्यपाश्सयसाहम्मए मणिकराविमाणेर शम्भय सहमणिमालिदविन्डामणि गंमेहासोदामोद्यामणि थालेतामणिगणिणासहशा पलपंचयमाणाणिव सिराण्यरिखकरपयरमहाकदिनसुवपक्षम्मखयरमहा कण विपानियर्सजमणियाई मारियाञ्चालविवाहपियरशाधना सादवघडरिकिणिनयरिङ्यवह जालदिंडपरिसिमरियासंगक्ष्यारिरक्ख गुणवालविरणवमशागातमिमुविससपनि सळसोगलगोविणादिसलमान साहासिहसपाध्यतंसुरमिणवितदिजेयराया वंदधिदेकहिनुकाणचहतुणयविश्प्पयाण श्रम्हदमुहमरणपिसपयिष गुणवा। लहोउपरिहयाप्पणु खरखरूहद्धाकसवालिया अमकंदश्ववसपाजिमिलियउ यमलगाय विलिविज्ञान संजमधरिसजमघरकामासीपणावमुहहपलिय बंदियाऽवलकमुथमि २००
यह सुनकर वेश्या जान गयी। सूर्योदय होने पर मुनि-युगल को मरघट में जला हुआ देखा तो राजा तथा पुरजन ने अपना माथा पीटा।
घत्ता-उस वेश्या ने अपने मन में सोचा कि यह पाप किससे कहा जाये ? क्योंकि चाहे इस जन्म में हो या दूसरे जन्म में, पाप पाप को खा जाता है ।। १९॥
२० हा-हाकार कर नरसमूह रो पड़ा। राजा ने अपनी निन्दा की। वध करनेवाले को लोगों ने खोजा। वह पापमार्गी नगर में जाकर प्रवेश कर गया। दुष्टरूप और नाम मिटाकर, भव्य के भाव से काँपकर नष्ट हो गया। एक दूसरे (मुनि और आर्यिका ने) विनाश को करुणाभाव से लिया, वे दोनों ही संन्यासी मरकर सौधर्म स्वर्ग में उत्पन्न हुए, कान्ति से सुन्दर मणिकूट विमान में। देव मणिमाली था और देवी चूड़ामणि थी, मानो मेघों में बिजली शोभित हो रही हो। उनकी आयु मुनिगण के द्वारा बतायो पाँच पल्य-प्रमाण थी। किसी ने जाकर
उशीरवती के प्रजा के साथ न्याय करनेवाले, स्वर्णवर्मा नाम के विद्याधर राजा से कहा कि संयमसमूह का पालन करनेवाले तुम्हारे माता-पिता दोनों को किसी ने मार डाला।
घत्ता-हे देव, वह पुण्डरीकिणी नगरी आग की लपटों में जल रही है, मुनि के घातक संग्रहकारी दुष्ट गुणपाल को भी युद्ध में मार दिया गया है ॥२०॥
२१ यह सुनकर सेना के साथ गरजकर वह चला जैसे दिग्गज हो। सेना सिद्धकूट पर्वत पर पहुँची। वह देवमिथुन भी वहाँ पहुँचा। देव ने देवी से कहानी कही कि तुम्हारे पुत्र ने प्रयाण किया है। हे मुग्धे, हम लोगों का मरण सुनकर और गुणपाल राजा के ऊपर क्रुद्ध होकर नगरवर को जलाने के लिए यह निकला है, और दैव के वश से यह हम लोगों के लिए मिल गया है। यह कहकर वे दोनों मुनि और आर्यिका बन गये और धरती के आसन पर बैठ गये। अपने कुलरूपी कुमुद के चन्द्र
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