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चकी सहो जिणणादेसिला विद्दिमाला या रिहिंदिवणे वंदिन मुणिक्ष्य कम्मर करम उलि करेवियामयि हार्वेसावध लश्यनवरघरैविद्धि परिवहन जाऊं जिमिंदलवणुन पट उत्तम गुलसियनादष्णिषु देवनमोरतयलणेष्पिषु वविधिवतिचं दरदिनमणण पढम् चिय कुमुमंजलि गाणय एडिंयेगलियपकालय एक्क दिया सरेल व लिलया लपक्क दिपा पोमेफणिरामन दादा सणांनावणिन सहिनिय सहियदे। पासुपधापूस सानि सुगमेसास विसमविसाउन लाज लजलियां विडिविसरी रश्महिय लघुलिस दोर्दिविगखेट यासरतिट्टे दिइन दागमाणु मरतिर्हि साया कंख करेचिनिया गाउँ लड्नु सुखदेवी वापरानं धरणिणा इकडकडुन व्याप तो
समागमाउसुरकष्मः पयनदिलिदिनिखवपचय ययह। ॥ केर चक्क एकक्कय् चजिविनिवति जय लखन लोगजोले गयी उन्नत कहकहसुलोयणत होअग्रदो तरह चरणनविसंगहो कंतीपण्याचें उता हो पुष्फयंतगुण डुंगो || १३ शाळा समदा पुराण तिसहि महापुर सगुणालंकारा महाकष्फत र
जिननाथ ने चक्रवर्ती से कही।
की आकांक्षा से निदान कर इन्होंने इन्द्र की देवियों का स्थान ग्रहण किया। हे राजन् ये अभी-अभी उत्पन्न पत्ता - माला बनानेवाली इन दोनों ने वन में कर्म को नष्ट करनेवाले मुनि को देखा, और उनकी बन्दना हुई हैं इसी कारण से ये दोनों सुरकन्याएँ अपने पति के पीछे आय इनका गतजीव तनुयुगल आज भी पृथ्वी की। दोनों हाथ जोड़कर भावपूर्वक श्रावकधर्म सुना ।। २२ ।। पर पड़ा हुआ है। लोगों ने उसे देखा।
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उन्होंने यह व्रत लिया कि तबतक घर के काम से निवृत्ति रहेगी कि जबतक जिनेन्द्र भवन नहीं जातीं। अपने सिर को भक्ति से झुकाकर देव- अरहन्त को नमस्कार कहकर वे दोनों चन्द्र और सूर्य हैं नेत्र जिसके ऐसे गगन को सबसे पहले मालाएँ अर्पित करतीं। इस नियम के साथ उनका बहुत सा समय चला गया। एक दिन चन्दनलता घर में एक करकमल में नाग ने काट खाया, उसके मुँह से हा-हा शब्द निकला। सखी अपनी सखी के पास दौड़ी, वह भी साँप के द्वारा काट ली गयी। विषम विष की आग से जलते हुए उनके शरीर धरती पर गिर पड़े। किंचित् वेदना से जिनेन्द्र की याद करते और मरते हुए इन्द्र का आगमन देखा। भोग
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विद्या सुनीर्थक और केवल न्यानउत्प
घत्ता – इस प्रकार सुलोचना भरत के चरणों में अपना शरीर झुकानेवाले तथा कान्ति और प्रताप से अजेय पुष्पदन्त के (सूर्य-चन्द्र) के गुणों से ऊँचे उस जय से कहती है ॥ २३ ॥
त्रेसठ महापुरुषों के गुण और अलंकारोंवाले इस महापुराण में महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित एवं महाभव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य का जिनक्षिप्त पुष्पांजलि-फल नाम का तीसवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ ॥ ३० ॥
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