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हे देव, पानी का लाल होना सुनिए
घत्ता-रस के लालची गृद्ध के द्वारा छोड़ा गया मणि तट के वृक्ष पर स्थित है । उसकी कान्ति फैलने पर लोग जल को लाल देखते हैं ॥ २७॥
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दिया था। यह देखकर भव्य कुबेरमित्र और दूसरा समुद्रदत्त भी प्रव्रजित हो गया और सुमेरुपर्वत पर सुविशुद्ध मतिवाले सुधर्म मुनि के पास जाकर उनके अच्छे शिष्य बन गये। मरकर वे ब्रह्म स्वर्ग में बुद्धि से महान् लौकान्तिक देव हुए। प्रियदत्ता ने विपुलमति नामक अन्तिम चारण मुनीन्द्र की आहार कराया और बच्चे का विचारकर उसने पूछा-हे मुनिनाथ, मुझे दुर्गाह्य तप कब प्राप्त होगा? तब दायें हाथ के अग्रभाग की पाँच अंगुलियाँ और बायें हाथ की कनिष्ठा बताकर वह आकाशमार्ग से चल दिये। तब सब से छोटे कुबेर दयित सहित उसे समय के साथ पाँच पुत्र हुए। वह सत्यदेव भी मर गया, वही यह हुआ है, बद्धनेह और प्रिय।
घत्ता-निष्पाप भरत को सन्तुष्ट करनेवाले जय से सुलोचना कथा कहती है। प्रभा से विस्फुरित,
अपने कुल के चन्द्र राजा के सिर पर गुरु, बालक और स्त्री का पैर लगता है अन्य का नहीं। और तुम यह जानकर कि क्रोध से भरी हुई प्रिया के द्वारा तुम्हारे सिर पर लात मारा गया होगा, उसे तुम्हें श्रेष्ठ नूपुर से पूजना चाहिए। यह सुनकर राजा ने सेठ की प्रशंसा की। धनवती ने केशराशि से नीले कर्णमूल में सफेद बाल देखा, मानो जिनधर्म का उपदेश कहते हुए के समान वृद्धारूपी दासी ने पति के बाल को दूषित कर
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