________________
दसुप्फईनासशाणानाध्यमदारापतिसहिमहापरिसगुणाकारामनावश्यष्कयतविर यमहालवसरतामयियमहाकबाजयमहारथचलायणासवतरणनामथळयातीसमाचार छिनसमन्नानागाळ 11
माईदनरिंदगुरिंदवंदिया जणियजा णमणाणदा सिरिङसुमदस निवासिणाजयश्चाईसान। अमियमश्श्रतमईसहि
साल्गुण! दिपमादिन जिपानश्यपाव
इवरजस1 वहिं वधुवनुसवाहिला ।
लाला वालुझावसुमश्राणा परद
रियहसमा पीचारहविहसिकाएसम।
विन्ति विसावयवादिहलमखा
तिहिकहिउधम्यनरतरुअरुहममेरममा उधतेसानिबछेवमंगलनिधोसहो ताऊबरकतवणिवासहोचरियामग्निनिमयारामजाज धावारगडवालादाले पिमदताबरतनविमउ कुडुतणमणपउथवियठतातंयलिमिरर
प्रसाधित बन्धुवर्ग को सम्बोधित किया गया।
कुन्दपुष्यों के समान दाँतोंवाली वह शोभित है ।। २८ ।।
इस प्रकार त्रेसठ महापुरुषों के गुण-अलंकारों से युक्त महापुराण में महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित एवं महाभव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य का जय महाराज सुलोचना-भव-स्मरण नाम
का उनतीसवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ॥२९॥
बह राजा लोकपाल, वह रानी वसुमती, जो इन्द्राणी जैसी स्त्रियों के समान थी, बारह प्रकार की दीक्षा से वे दोनों श्रावकव्रत के अपने मार्ग में लग गये। शान्ति आर्यिका ने निरन्तर धर्म का आख्यान किया। अन्त:पुर जिनमार्ग में लग गया। इतने में जिसमें नित्य उत्सव मंगल का निर्घोष हो रहा है ऐसे कुबेरकान्त के निवासस्थान पर चरियामार्ग में राग से रहित जंघाचारणयुगल आया। प्रियदत्ता के पति लोकपाल ने उसे नमस्कार किया, उसने भी शीघ्र उसके आँगन में पैर रखा। इतने में वहाँ दो पक्षी
सन्धि ३० अमृतमती और अनन्तमती सतियों तथा जिनवती, गुणवती तथा श्रेष्ठ यशोवती आदि द्वारा शीलगुणों से
Jain Education International
For Private & Personal use only
www.jain 561g