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श्रादित्यगतिनामावि द्याधरकहित्पवन
अदाणा किंकरणकणविनपलोडं संविहिदिहियविहाणेचोल गयटकवालयलसारामहो। कहिमिसमंदपुरतिमगामही कपडएकानगाव जामचूरशकिखरसामीप सरदहर सिदामिसलाय नवमडविंडवापिंगललाय असहरतिरकऊहिलपहपजरुज्हेंटउत्सडिजाय यउमजरूवविदराउमातिणाहरियातणकन्यारावटलश्य पक्षिणियासिदिलमेविड । प्पनियपियपरिहवणारिविजयशविरसववादसणकराला--- कसमसखगुखद्धविरालेंना मुएबलदेडहविहाणिया विहि बलवंधपठन अपठतणुममविरिचियग विसर्दयझेमहेधिता उशा परिहिंगमुळविपमुपयशमोनकिंदिरहमणहख । एतस्मुिरफलवन्देसतरे जावदयादलपाखंडसंदरे खयसेलेख -- गुदाहिणसदिह उसिरदेणयरिसमाकमिसणि दिणाणमा निवसइखारेसा ताण पखरादणेसरू सहोससिपहदेविहिवाश्चरु तपठहिरणवस्मरण स्वरू तेलुजेगिरिवरवत्तरसदिह गठराविसयलादासादिहे चडियाउन्नहिंग उबिजादा मारडमाहवियदेदविदवरू सारथ्मणमरवितहिंपरिको ताहविहिमिजारकाणाय
NOSIS:- वरुवा
एक बार किसी नौकर ने नहीं देखा और विधि के विधान से प्रेरित होकर कबूतर कबूतरी का वह जोड़ा घूमता हुआ, उद्यानवाले नगर के सीमान्त ग्राम में चला गया। जबतक वह अपनी गर्दन झुकाकर चोंच से कण जब पशुओं और पक्षियों में प्रेम होता है तो मनुष्य का मन क्या विरह से विदीर्ण नहीं होता? फिर बहीं निकालता है और बाड़ के समीप चरता है, तभी वह दुष्ट, उन्मत्त ( सरदंदुर और सेठ) के आमिष का भोजन जीवदयाफल से सुन्दर पुष्कलावती देश में विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में मोक्ष की नसैनी उशीरवती करनेवाले, नवमधुबिन्दु के समान पिंगल आँखांवाले, अशुभ तीखे और कुटिल नखों के शरीरवाले बिलाव नगरी में आदित्यगति नाम का विद्याधर राजा निवास करता था। तेज में वह मानो प्रत्यक्ष कामदेव था। उसकी के रूप में उत्पन्न हो गया। बाड़ के विवर से शीघ्र निकलकर उसने कबूतर को कण्ठ में पकड़ लिया। कबूतरी पत्नी शशिप्रभा से रतिवेग (कबूतर) हिरण्यवर्मा नामक कामदेव के समान सुन्दर पुत्र हुआ। उस पर्वत में सब ओर से घूमकर उस पर झपटती है, अपने पति के पराभव पर स्त्री भी कुपित हो उठती है। पूर्वजन्म गौरी देश और भोगपुर नगर से प्रसिद्ध उत्तर श्रेणी में वायुरथ नाम का विद्याधर आरूढ़ था, जो स्वयंप्रभा नामक के वैर के कारण दाँतों से भयंकर उस बिलाव ने कसमसाते हुए उस कबूतर को खा लिया। विद्याधरी का पति था। वहाँ पर वह रतिषेणा नाम की पक्षिणी मरकर उन दोनों से इस प्रकार जन्मी मानो __ घत्ता-पति के मर जाने पर दुःख से विदारित कबूतरी ने विधि को बलवान् कहा और अपने को तृणवत् यक्षिणी हो। वह कन्या समझती हुई उसने साँप के मुँह में डाल दिया॥४॥
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