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पसावतीपुत्रीकपात
उपसिहपदावश्नामें वसलहिणंकाो । युगलुदिपिहिता
यउकाहविणदण्वएकालपादिहुकवायमि बाजाराजापाते
पहिलालरातिपहिरामवाणामाल परख काहा
उसमरविलिहियनवाले पंडिजवित जम्मका हाण्ड पस्किणिवविख्यसमाएराधना कमपिडपापवरसर्यवरणातायममक्किएलरिक उपारावाडयलउनियाभियुडे संचवसणि रिद्धिमा नियसबुझनिमिवडियमहियले
- सिञ्चियवाणियणसिरमुरयलरश्सपाचारा मशंखामिय सारख्यरविरडेअायामिल कंधुश्णापरवरविमविलहियदेदवद्धा रापखवियन हाउसयवरमविविज्ञामधाउखगवजाझाशदश्यचितपदपहाविना सावितायनिवादियवासावि/मंदरुजायविगइरएमडिल फलदासुर्जतहिंसकडिन सुर। गिरिपरिणीचविहाध्य खबरहानाकवरिपराश्यालश्यनतजावसुहापावखशिद हर
प्रभावती के नाम से प्रसिद्ध थी। रूप में उसकी प्रशंसा कामदेव के द्वारा की जाती थी। एक दिन कुमार (हिरण्यवर्मा) नन्दनवन की क्रीड़ा के लिए कहीं गया हुआ था। उसने देखा कि एक कबूतर-जोड़ा क्रीड़ा अपने पूर्वजन्म की याद कर धरती पर गिर पड़ी। उसे सिर और उरतल पर सींचा गया। रतिषणा का कर रहा है। उस युवा कुमार ने पूर्वजन्म की याद कर पट्ट पर जो पक्षीरूप में आचरित सम्माननीय बीता हुआ जीव मध्य में क्षीण प्रभावती रतिवर विरह से पीड़ित हो उठी। कंचुकी ने राजा से निवेदन किया कि कन्या जन्म-कथानक था, वह लिख डाला।
की देह खोटे रोग से नष्ट हो गयी है। स्वयंवर से क्या ? हे विद्याधर, आओ आओ, चला जाए। प्रिय ने उसे ___घत्ता-स्वयंवरवाली उस मृगनयनी ने अपने प्रिय को लक्षित नहीं किया। अपने पास से जाते हुए उसने चित्रपट भेजा है जो उसे अपने हृदय में अच्छा लगा। मन्दिर में जाकर उसने गति-प्रतियोगिता प्रारम्भ की एक कबूतर-जोड़ा देखा ॥५॥
है। जिस पुष्पमाला को वह स्वयं छोड़ती है, वह सुमेरु पर्वत की प्रदक्षिणा के लिए दौड़ी, और विद्याधरों के आगे कुमारी पहुँची, जबतक वह उसे ले नहीं लेती, तबतक सुख नहीं पाती।
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