________________
मुणिमाकशककिंपिनदिजिहणाणणावियाणि डणिजिहवसठलेपट्यश्वालहश्चयासक तनामालशेजिदजाय विवाहाजिहण्डजिनसार मनोसरणपजिहखखमग्नलसुनिकिता कणकड्य यणहिंडोछिउपालिउचठजिहसन पास जिहसनलहरड्याम बिहधरिटणा
कयठेपलावण जिहबकवरूपसनपरिक्षतणुश हजिहजिहसाहिनमुगिणा मयणहरिणविईसणवाह निहातिहकतियाहिश्रावणिय लाया यालखरेपश्यप्पिसहसंजायहोसिदिलियसोनहोसा दिउसयलहासाव्यलायहोलिलामनिसणविणवग्छ। मासश्यविहसियवत्तए सुपचूजसवम्पायरियाल यउवठमिगनेत्रएशअजिबहाईसम्माहिाणीघरमणि राधणवाहिणि अवरखवरसागरायाणा किलविधिमयडू
२०
और जिस प्रकार उन्होंने केवलज्ञान से जाना था, मुनि वह सब बताते हैं। कुछ भी छिपाकर नहीं रखा॥२॥ अखेटक के समान मुनिनाथ ने जिस-जिस प्रकार कहा, उस-उस प्रकार कान्ताओं ने आकर लोकपाल के
पुरवर में प्रवेश कर शुभ संयोगवाले शिथिलित-स्नेह समस्त श्रावकलोक से यह सब कहा। किस प्रकार वैश्यकुल में दो बालक उत्पन्न हुए थे-रतिवेगा और सुकान्ता नाम से। किस प्रकार उनका पत्ता-यह सुनकर जनपद की धर्म में रुचि हुई। विकसित मुखवाली मृगनयनी प्रियदत्ता ने गुणवती और विवाह हुआ और किस प्रकार भागे, किस प्रकार सामन्त शक्तिषेण की शरण में गये। किस प्रकार दुष्ट पीछे यशोवती आर्यिका के चरणों के मूल में व्रत ग्रहण कर लिया॥३॥ लग गया, किस प्रकार उसे डाँटा गया और कर्णकटु अक्षरों से निन्दित किया गया । सज्जन की संगति से किस प्रकार व्रतों का पालन किया और किस प्रकार सुख-सामर्थ्य से जन्म लिया। किस प्रकार शत्रु ने उनके घर धनवती सेठानी भी घर छोड़कर सम्यक्दर्शन में स्थित होती हुई आर्यिका हो गयी। और कुबेरसेना रानी को जला दिया और किस प्रकार वधू-वर पक्षी-योनि को प्राप्त हुए। कामरूपी हरिण के विध्वंस के लिए भी दीक्षा लेकर अदीन हो गयी।
Jain Education International
For Private & Personal use only
www.jain 563.org