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परिपूरियातहिंगकुयंचमाणिकवंशजागहम्मदसाहोरवंचावणितियाइसमाश्याष्ट्र बनासलिपि यदत्ताश्याठा सबाहवाषणादसणारं दिनाविलवपणिवसगारंगेहंयसविपरितावियाश्च स्सविस्थालेधावियाश्ताकपदावाजथकाएककठपकरजलासखापखादया करावलम्पु/काजधाकरलबियखमय पयपासयाहिउहालियादियणवजसवश्यामालियादत्रा लहनुपवितदिंचरुयबन्नुहियवम् संसारहाखणेविरवाचित
पुत्रीनुकीयरीता निगरालय गिरिकहरालए बणयसवितकिलशनमाणहोस्।
करणपंचरत्नत्तो हिसम्माण्डाकारणलकलजिशनराठादारमिटाडाजणव
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जैन। मियादनाविवाहा
रामवासे अमिलमध्यपतमशः रंसमिवष्टटकिरन
पासे तउलटसहिंसामंतिणाही एनदिविण्डहमालपाहिब पितामहासुमणुक्काहाङपिय दक्षासङ्घविरलविवाहानयवाखमरेपिस्लायवास्तुपयपाल होसिया सहस्यमयणाखादवसिरिदायमस्वागश्हावसमस्यहश्वणना २०० हागयजम्मघाराणसादिमतापपुणुलग्नमशाहिमिपिम्पयामासतारण।
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उनमें एक में पाँच माणिक्य रखे हुए थे, जो उसे ले ले वह उसका पति होगा। प्रियदत्ता आदि बत्तीस ही पुत्रियाँ सुधिसम्मान और दान के लिए हे सखी, कलह नहीं करनी चाहिए ॥२४॥ वहाँ आयीं। सेठ ने सभी के लिए आभूषण, विलेपन और वस्त्रादि दिये और यह कहकर कि अपनी पसन्द के घड़े ले लो, उसने भक्ष्य पदार्थों से भरे घड़े बता दिये। तब बहुभोज्य से भरा एक-एक स्वर्ण पात्र एक- राजभवन के निकट स्थित जिनमन्दिर में अमृतवती और अनन्तमती आर्यिकाओं के पास उन कन्याओं एक ने ले लिया। रत्नों से भरा घड़ा प्रियदत्ता के हाथ लगा, भवितव्य का मार्ग कौन लाँघ सकता है ? गुणवत्ती, ने नगाड़ों की मंगल-ध्वनियों के साथ तप ग्रहण कर लिया। सुधीजनों का उत्साह बढ़ानेवाले उस वणिक्पुत्र यशोवती, नामावली, शुभसखी प्रजापाल की पुत्रियों ने वह भक्ष्यपदार्थों से भरा स्वर्णपात्र नहीं लिया। एक का प्रियदत्ता के साथ विवाह कर दिया गया। व्रतों का पालन करनेवाला लोकपाल मरकर प्रजापाल का गुणवान् क्षण में उनका मन संसार से विरक्त हो गया।
पुत्र हुआ। देवश्री देवी मदमाती चाल से चलनेवाली धनवती की वसुमती नाम की पुत्री हुई। पिछले जन्म घत्ता-(वे कहने लगीं) अच्छा है पशुओं से मुखर पर्वतरूपी घर में प्रवेश कर तप किया जाये। की पत्नी वह (वसुमती) उसको (प्रजापाल के पुत्र को) दे दी गयी। फिर दोनों प्रेमपाश में बंध गये।
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