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सासिनश्परिट गजपहिणबहकारिखसहदेश्यहाविठलागवजारमुहिडपडणाकडिपादज तिधम्मपाजीवकिरकाहिवसतितदानश्यचुनस्यमय महायतापसमापवस्तु सहिंपरिकणिज सणणामाईश्वरूपक्रिसिणहकाम अलईकालतश्वविज्ञान सासन्निसणुमहिमरविताम्बाघ
नातिवाणिणावणिसिरिमणि धणश्यहमुटजादउसाहमंजणमयालये सुरराममाया वश्वरकुवेरमित्रक
ननिमक्कलदरकमलसिरिकच नामसाहगिउक्तवरकव सुमरीया घरिपारायतियुग
वणवाहिणिक उजवा गुधम्मापडओठमतिदेवतहादेचा
कुक्षिसक्तेिलम सोउ वचंयतिमसप्तरुमणगुमरस
सिकुवेरकांचनाम उरीयनसाथपंग पवईकरस
वा। वाङ्क मजणश्यरिमचारिखौद्धानि बंचियमिवश्यालिनु अवरुबिसुश
सिरसुसहलिमितु सत्यमेवरणश्वीणा सवणु घरचितिनश्कामधषुझ्यादिवसायलजपखणाल नवजाना। एपिडपादिछुवालु पिलसणुतणसह्यरूपच किंवडाकिएकुञ्जकलनुश्लश्मामुतलपरममि) २००
और परिजनों के द्वारा उससे सम्भाषण किया जाता। पुकारने पर नाचता और शब्द करता। भेजा गया क्रीडापूर्वक जाता। राजा पूछता है-'पापी कहाँ जाते हैं और धर्म से जीव कहाँ निवास करते हैं?' वह कबूतर मानो वह अपनी कुलगृहरूपी कमलश्री का प्रिय था। नाम से उसे कुबेरकान्त कहा गया। धर्मानन्द योग का जोड़ा उसे चोंच से नरक बताता है और उठो हुई उसी चोंच से स्वर्ग-अपवर्ग बताता है। वहाँ मैं पक्षिणी की याद कर वे मन्त्रीरूपी देव उसको भोग प्रदान करते हैं। वस्त्रांग, भूषणांग, मइरांग, चौथा भोजनांग रतिसेना नाम की थी और तुम स्नेह की कामना रखनेवाले रतिवेग थे। जब हम लोग क्रीड़ा करते हुए रह (कल्पवृक्षों के द्वारा) पुण्ड्र और इक्षुरस का प्रवाह वहाँ नित्य प्रवाहित होता है, स्नान के लिए वारि का प्रवाह रहे थे तभी वह शक्तिषेण (सामन्त) मरकर
बरसता है। नित्य ही उत्तम धान्य के खेत पकते रहते हैं। नित्य ही सुखद लगनेवाली बाँसुरी सहित वीणा घत्ता-वणिक्श्री के मान्य उस वणिक् से धनवती का पुत्र हुआ। जो सौभाग्य और जन-मन को अच्छे स्वयं बजती रहती है। घर में चिन्ता करते ही कामधेनु दुह ली जाती है। इस प्रकार दिव्यभोगों के भोगने में लगनेवाले रूप से मानो सुरराज था॥२१॥
क्षण बितानेवाले अपने पुत्र को पिता ने नवयौवन में देखा। उसने उसके प्रिय सहचर प्रियसेन से पूछा- 'क्या बहुत-सी वधुएँ चाहिए, या एक ही कलत्र चाहता है तुम्हारा परममित्र, बताओ!'
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