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राइंसुबमुहमुहलालाबिंडवाइंटूटसुपरनिनियमयले याइंसिरकाविडसिसिसमाश्वयासिहतमाश्याकरक्या
ईबासखिरकिंगसुदासताठ किंवकरांमडघरजाईयार सक्तिसेनुमत्रीम
उश्यपलिमविसासंदनपडियागनपाउनियञ्जपणराकपि निष्ठाकरण
उणातिमुत्पविरायण तवचरणलण्ठनिवेश्यण जिंदण्णुि दटमरुमाहवास तहायुरु
तपश्चरणकरण हपासुणचारणासु मुरगुरु
सक्लिनेन। गणासहिठरिसिवजसन धजतरिणावितधावता तबकवरूणपकाकर सहिहितणसम्मा पिटमद्धसामिह गयवरगामिहगेहथवज्ञसपिठार रामणि वस्साहाटस्वरंच पणप्पिएपडाहसकंजकच सातानिहार। तासुजाम् पनहेविसन्निसपारकताव माउहरेथवणियनियमघरिणागाविसलमाइपवरकरिणी विविमुपालवाजिदराईवलाझविमसुरमसिरिहाश्गुरुहारषारिपसाढलासरीर सासुरदार २११
तथा ऊपर वक्ष पर गिरी हुई तुम्हारे मुख की लार की बूंदों को अपने वक्ष-स्थल पर गिरे हुए अनुभव कर घत्ता-उस शक्तिषेण ने नवकमल के समान हार्थों वाला वह वधू-वर सेठ के लिए समर्पित कर दिया रहा हूँ। हे वत्स, तुम्हें शिशुगति और वचन सिखाये गये थे। सिद्धों को नमस्कार हो, ये वचन सिखाये गये और कहा - गजवरगामी मेरे स्वामी के घर में रख देना ॥ १९॥ थे। हे पुत्र, क्या तुम अपने पिता को भूल गये? बहुत कहने से क्या? आओ अपने घर चलें।" मन्द स्नेह
२० वह इस प्रकार प्रार्थना करने पर भी अपने पिता के घर वापस नहीं आया। प्रशस्त मन-वचन और काय के सेठ तुरन्त शोभापुर गया और जबतक वह प्रभु को प्रणाम कर कान्तासहित कान्त को सौंपे, तबतक यहाँ व्यापार से शोभित पिता ने विरक्त होकर तपश्चरण ले लिया। उन्हों आकाशचारी गुरु के पास दृढ़तर मोहपाश शक्तिषेण नाम का सामन्त अपनी पत्नी को उसकी माता के घर में रखने के लिए, मानो विन्ध्य के लतागृह को काटकर, जिस प्रकार बृहस्पति ने ऋषित्व ग्रहण किया, उसी प्रकार शकुनी और धन्वन्तरि ने भी। में हथिनी को रखने के लिए, मृणालवती नगरी के जिनमन्दिर देखने और ससुराल के श्रीधर को देखने के
लिए गया। परन्तु गुरुभार और शिथिल शरीरवाली पली अटवीश्री को ससुराल
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