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सुलोचमा जिमचे यालयकायोत्सर्ग स्थापन।
लार्किकरक्में थिमतायाणएकाउमने आयश्हाधिवाहविचारों जाणाजावणसिसंधारे एसाहेबांकडुसमारिजातंचछवश्युपणव हरिलाघलायनजामायनलाण सपिअकंपण्ड या रि हिउजिविज्ञानपडिवलमिट वानरूणिकपुकाराच्या तिणसमउवखाहरणखड़ चलिउधक उमित्रहरुविरुडु खानपार गिलासपुपरसिरिता देवकितिजनधम्मुसमिरिक पचविमसि रावणायकलुज्ञवायंचविकदसंगाममञ्चकव पंचविण्यासाविस विसहर पंचविमाडवहरणसयकर पंचविलासवालणदारुण विविपचणापंचागण अतिरूममकतारविपासणा पचविणारा विश्पचयासणा मदण्डखणवस्ताहिंलहराकरणदंयरिणा इमणदिहट जजजाउजविवासिउजायला तहिणधररित्रकामा निहाय विस्यमयरतूहयज्ञतोधिग्वेदहमदारिकधरेदार सरसमणहसुटकेहदावणगिरिमळएकेसरिजहाचाहहहायर
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अनुचर-समूह के द्वारा रक्षा की जाती हुई वह कायोत्सर्ग से निश्चल मन होकर स्थित हो गयी। वह ध्यान से उत्पन्न थे। पाँचों ही संग्राम का उत्सव करनेवाले थे। पाँचों ही दाढ़ों में विषधारण करनेवाले विषधर थे, करती है कि नाना जीवराशि का संहार करनेवाले विवाह विस्तार से क्या ? यहाँ दूत ने थोड़े में चक्रवर्ती पाँचों ही मुकुटबद्ध युद्धसाथी थे। पाँचों ही मानी भयंकर लोकपाल थे। पाँचों ही मानो पाँच सिंह थे। शत्रुरूपी के पुत्र द्वारा अवधारित काम बता दिया।
तरुओं और मृगों के कान्तार का विनाश करनेवाले थे, पाँचों ही स्वयं पाँच अग्नियाँ थे। वहाँ छठा था मेघप्रभ घत्ता-यहाँ दामाद ने पुलकित होकर कहा-'अकम्पन ! तुम धनुष धारण करो, शत्रु को जीतकर विद्याधर राजा, जैसे इन्द्रियों के बीच में मन देखा जाता है, वैसा। जहाँ जय ही जीवरूप में व्यवसाय में लगा जबतक मैं वापस आता हूँ तबतक तुम तरुणी की रक्षा करो।" ॥२४॥
हुआ है, वहाँ शत्रु अपना कर्म संघात (सुलोचना का अपहरणादि कर्म) धारण नहीं कर सकता। जिसके भीतर
मकरव्यूह रच लिया गया है, ऐसे विजया महागज के कन्धे पर स्थित सोमप्रभ का पुत्र (जयकुमार) ऐसा उसके साथ श्रेष्ठ वीर युद्ध में उद्भट सुकेतु और सूरमित्र योद्धा भी चले। हाथ में तलवार लिए हुए दिखाई देता है मानो वनगिरि के मस्तक पर सिंह बैठा हो। अपने चौदह भाइयों से शत्रुश्री का अपहरण करनेवाला देवकीर्ति और श्रीधर के साथ जयवर्मा, ये पाँचों ही चन्द्र-सूर्य और नागकुल
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