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विधासकमारदाग महिणिहितामणदेह जनसाकंपणुपायहिंडिनवासावश्सामिलविसरमडि
उअमाईनरबड़गारपरमसत अमापरिदेवनइंसुरतरुअरणलिणाबरखइंदिपायहरेक मधेस्वरुप
वलयसरईससहरू अणुयालियहकारंथसिजश्यलक्षापा अर्ककीनिधिमावन ।
दाणसस्जिदंदिलशाता श्यवक्षणसासरहगरुडामहरुमाणु मुयाविर लहामश्चदिणिसुलायण पुष्पातपरिणाविलाई माला
माध्यमहापुराणतिमहिमदाद
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लोरयासदवराववादोबाम हावासभापरित समवादाजीला गाश
दणरिंदसुरिंदवंदियाजणिय जणाणाणंदा, सिरिसमसण्कमहान
वासिपीजयश्वापसालात त्रीवाोरनिद्यावर कविरचितर्गद्यपधरनक की -
तंकंदावदातदिसिदिसिवयमा २४॥ यस्पनी ससुराधेः कालेशलाकरालकलिमलमलिमप्पद्यविद्यापियाग्या सायसंसारसारनियसखितर
की बहन लक्ष्मीवती से उसका विवाह कर दिया।
कुमार के पास स्नेह से जाकर और धरती पर दण्डासन से देह को धारण करते हुए पैरों पर पड़ते हुए स्वामी की भक्ति से भरकर अकम्पन कहता है- "हम लोग मनुष्य हैं, आप परमेश्वर हैं। हम लोग पक्षी हैं, आप कल्पवृक्ष हैं। हम लोग कमलों के आकर हैं, आप दिवाकर हैं। हम कुमुदों के सरोवर हैं, आप चन्द्रमा हैं। अपने अनुपालितों से क्या रूठना, अपने भृत्यों को अभयदान दीजिए।"
पत्ता-इन शब्दों के द्वारा उसने भरत के पुत्र अर्ककीर्ति का मत्सर और मान दूर कर दिया तथा सुलोचना
इस प्रकार त्रेसठ महापुरुषों के गुणालंकारों से युक्त इस महापुराण में महाकवि पुष्यदन्त द्वारा विरचित एवं महाभव्य भरत द्वारा अनुमत इस काव्य का सुलोचना-स्वयंवर-वर्णन नाम का
अट्ठाईसवाँ अध्याय समाप्त हुआ॥२८॥
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