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सरथपासिअर्क
कार्निवायजा
बसिसजापतिमगुरुकावंधुउसिझइतिवरसुगुरुकावेकाविनखमाजाश्गुरुकावसायघरोए
गुरुवाणश्कलजाजाशे परिणामस्थलसाशाईलसाइनसुश्मसिरतजाह जिम्मपरिहा तिनधुउमरणुतादालदिलमिडदिहचण्डलंधियउनेणगुरुसुमपयछु। लाजिदानत सुप्पद कत तोयेसिनगुणवंतछावपिणापाडयणवाणिण पचणसमझमहतलाशालादेवकसणसि यतविराशेलामालध्यवरेवराई किंचनवनिहिवश्याङ्ण किकिरजलक्षिहपापियधयाग लपतत्रितोविनिमकिंकराई हपायपामलालियासिराद जयधिजमार्कपणापलिवाहं विनादेठा मिसुणिनिवअणिवाद पदिलमजदोसुदादासुबासुजदिमासुमननसहनुयाय बायकोकि उवाणिहान दावियमसयवरावाहनिहाउतमजतयानाखतमालरलालसलग्नीतासवाल पर ।। परिणिरंतहोगसमडियाचाहनुदत्तणयोसमरसिडिल पंचमउदासुवहनुकुमारू नियुमिननयर
बच्चे मार्ग जानते हैं, पिता के कोप से विश्व में त्रिवर्ग सिद्ध होता है। पिता के कोप से कोई भी क्षय को प्राप्त नहीं होता। पिता के कोप से सम्पत्ति घर आती है। पिता के बचन जितने-जितने कडुए होते हैं वे परिणाम में उतने ही उतने प्रशस्त होते हैं। ये वचन जिसके कर्णकुहरों में नहीं जाते उनका जैसा पराभव होता है वैसा ही निश्चय से मरण होता है। लो, मैं स्वयं दृष्टान्त रूप में उपस्थित हूँ कि जिसने पिता से सुने पदार्थ का उल्लंघन किया।
घत्ता-जयशील सुप्रभा के पति काशीराज अकम्पन के द्वारा प्रेषित गुणवान् मन्त्री सुमति आकर और प्रणाम कर राजा से कहता है ॥२॥
"हे देव, कृष्ण-धवल और लाल रत्न तथा प्रवर वस्त्र ग्रहण करें । हे नवनिधियों के स्वामी ! तुम्हें उपहारों से क्या ? जल के घड़ों से समुद्र को क्या करना? तो भी भक्ति से तुम्हारे चरणकमलों में अपना सिर रखनेवाले, अपने ही अनुचर जय-विजय और अकम्पनादि राजाओं ने जो निवेदन किया है, उसे हे देव, सुनिए। उनका पहला दोष तो यह है कि दीर्घबाहुवाले तुम्हारे पुत्र को अपनी कन्या नहीं दी, दूसरा दोष यह है कि बरसमूह को आमन्त्रित किया और स्वयंवर विधि निरोग का प्रदर्शन किया, तीसरा दोष है कि प्रेम की इच्छा रखनेवाली बाला उससे (जयकुमार से) लग गयी और उसके गले में माला डाल दी। चौथा दोष यह है कि परस्त्री का अपहरण करते हुए तुम्हारे पुत्र से युद्ध में लड़ा। पाँचवाँ दोष यह है कि कुमार को बाँध लिया और युद्ध रंगमंच के उस वीर को अपने नगर ले आया।
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