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धत्ता हे ससुर, तुम्हारी गोष्ठी और जिनवर की दृष्टि से विरति कैसे की जा सकती है ? तो भी अविनीत स्वकर्म के द्वारा जीव बलपूर्वक खींचकर ले जाया जाता है ॥ ४ ॥
डिहे जिपवर विडिहे मामविरकि किन अनिम्मे तो विसकम्मे जीन नियहे चिनिको विसद सुहिनिहाय तान परियाणविक वियण सा3 उम्मुख्यावरु ससुर। पडिवो हिन हमनें वरेण तेजते हरिखरखरण नऊ पिहि गिल्लमा करिमरण पडिपल्लिन पल्लिउद पेण चलचलित खलिमध्यवरण कजलविलयचलवलिमनीर थ्रिविसहरलपत रदलियार उहियगडी रहेर निभाय आकप्रिय ककुहनिवासिनाय गवस सासमिवसच्चा दियह दिग्गंगातीरुप नियनियहसा वा सहिसउण हेमं गया इसनल विनिसम्म पडकडिदे महामड सुरसमाणु थिनराणठ गंगपला माणु ॥ धन्ना सविहंग हे दिगगहे। चण ससिरदिपडि २११
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सुधीजन के वियोग सन्ताप को कौन सहन करता है? फिर भी कार्य के विकल्प भाव को जानकर ससुर ने पुत्री और वर को विदा कर दिया। उनके जाते हुए घोड़ों के खुरों से आहत धूल ने आकाश ढक दिया।
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मधे स्वरुसुलोच नाविवाहलवाला हस्ति नाग पुरिको
गजों के मदजल से धरती गीली हो गयी। वेग से ध्वजपट चंचल स्खलित हो गये। समुद्रमण्डल का जल चंचल हो उठा। धीर विषधर भार के भय से दलित हो गये। नगाड़ों का गम्भीर शब्द हो उठा। दिशाओं में निवास करनेवाले गज काँप उठे। शत्रुओं को शान्त करनेवाला वह जाते-जाते कुछ ही दिनों में गंगानदी के किनारे पहुँचा। अपने-अपने तम्बुओं के आवासों से सम्पूर्ण हेमांगदादि राजा सभी ठहर गये। वस्त्र के तम्बू की कुटी में महावरणीय, देव के समान वह राजा गंगा को देखता हुआ स्थित हो गया।
धत्ता- लहरों से युक्त गंगा में पूर्णचन्द्र और सूर्य के प्रतिबिम्ब ऐसे दिखाई दिये
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