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SSAANESSMपारापूनरासायासकारवर
नामसमयिबडेवानामणध्या परियाणविलापशवाकवचनकालियापन
सुरजोस्तनिवसणाशंटिपथ्यममहसपा दिल्लीदिवासियमंदारमाल सकतवरणवितश्य वालापसपकाईकरकेणधरित कितारिनसरिसाकवणुतारसासणुलासरसंदरिखदणवद्या लालसाविहिडियछालदेवियरिकडयधिशरथाळापाविचाकेउचनकलियडाळ महयावया बंगसिराखेया विंसिरानामैपक्ष्या परियाणविताम्सुहपहानासिखङ्गनाससकरमाकला नादानुसमणियहवयंसि संसरिसिमकालाज़गयासि नंदणवणविउलेवसंततिला इंडेदहा
सध्यवानिलय असियामसाध्वजणविसिहपश्परममतमड़पवासहाछियातिनिसमावडाका गंगादेव्यामुलोच
प्रियंगुश्रीनिवि उविकणविण्हीलहषि नायोग्यवस्तुत्तेट दामना हरखरमाडगंगाकृष्ठ
असिमिया
पंचनमस्कार पगंगादेवयाग का।
दापन॥ लंताकक्लियविसहरण सहसरसनादान्जराणना पसासरलदलकामलण चहकतकरचुप्पलणाम
२५३ जामासंतीयवरहिनर्हि मसुमरियदहिपहरो सानिसुपहिहहलपिमालिजलदेवमनार
ली गयी थी। तब तुमने असि आ उसा' आदि व्यंजनों से विशिष्ट पंच परमेष्ठी का पंचणमोकार मन्त्र मझसे देवताओं के योग्य उसे वस्त्र दिये गये। और भी दूसरे-दूसरे आभूषण दिये गये। खिली हुई मन्दारमाला कहा था। दी। अपने नरवर (जय) के साथ वह बाला विस्मय में पड़ गयी। वह बोली-"तुम कौन हो? और गज पत्ता-उन अक्षरों को सुनकर और पाप को नष्ट कर मैंने यह विभूति प्राप्त की। देवताओं के घर गंगाकूट को किसने पकड़ा था ? नदी कैसे पार हुई? तारनेवाला कौन था? सज्जनों से बन्दनीय हे सुरसुन्दरी, तुम में गंगादेवी हुई॥९॥ बताओ-बताओ?" तब वह भी बताने लगती है-"जिसमें शबर घूमते हैं, ऐसे विन्ध्याचल के निकट विन्ध्यपुरी नगरी है, उसका राजा विन्ध्यकेतु था जो अपनी शक्ति से हाथी को वश में करनेवाला था। उसकी पूर्व में अपने सरस, कुत्सित विषधररूपी पत्ति के साथ क्रीड़ा करती हुई जिस नागिन को तुम्हारे पति सुन्दर महादेवी प्रियंगुश्री थी। मैं उसकी विन्ध्य श्री नाम की पुत्री थी। पिता ने तुम्हारा प्रभाव जानकर और ने सरलपत्तों से कोमल, हाथ के लीलारक्त कमल से आहत किया था। और जो दूसरे मनुष्यों के द्वारा दण्डी समस्त कला-कलाप सीखने के लिए हे सखी, मुझे तुम्हें सौंप दिया। क्या तुम याद नहीं कर रही हो कि जब और पत्थरों से कुचली जाकर मृत्यु को प्राप्त हुई थी, हे प्रिय सखी सुनो, वह काली के नाम से यहाँ जलदेवता हम क्रीड़ा करने के लिए गये हुए थे, विशाल वसन्ततिलक नन्दनवन के एक लताधर में मैं साँप के द्वारा इस हुई।
Jan Econo
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