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मेघे धरूगंगान दीमध्ये काळी देव्या उपसमु करण्या
बर्किकर समूह रणे वणजलजलासमा इष्ण रस्किनपुरिपुराउछिन घरम णिनिम्मिटे वारुतारेसयसेविया दरिक ढण्यवेविसपीढय हवि उस लोयणदेनिशान दिश
किंकर समूह आनन्द से नाच उठा। रण-वन-जल और आग में पड़ने पर पुरुष को पूर्वार्जित कर्म ही बचाता हैं।
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गंगादेव्या यास
गनिवारण
धत्ता - श्री से सेवित सुन्दर तीर पर मणिनिर्मित घर बनाया गया। देवी ने सिंहासन पर स्थापित कर सुलोचना को स्नान कराया ॥ ८ ॥
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