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विवशंभवेनिह अमरमुहिलिहेजसमपंडरवशाणायामल्लेविखंवारतेलु कामवयस्ट्रेडिंग गंगानदीतटमेघेव स्त्राऊतस्या।।
हसमहिमहळु साकेय होजाणीवस्त्रपसाराथिदर
पंजलियनवडशारे परिहारपश्यारिनदवहि पाटबिन्द्रविननवेप्पिचकहिाविसहरमरखेयरवि
दिलसेवा जपणावश्यवाहपखदेवातादिन्नदिहि नाहधिमाल ससिवियासियनकंदोहमाल पसरतय पायरससायरा मुद्धंजामविसई परमसरण नका
लियएणमदारुहासुश्रयलियश्वाविठपीटना मेघवरूप्रयामा
सम्वविङयुटुसम्माकियन पारिसुपरमुनस प्रायासन्युलोटिक
हसमियाजलोपासिन्यवरुणसापर रित्तरथमिलणक
माणुयाउनचथरुसूद्ध गमणंगणापत्रवर गरुन कामानराठमश्रावासस्टजियमलेविकालोकसामिपश्मेल्लेविकायुहडसगामित्रा
मानो भ्रमरों को सुख देनेवाली लता के सफेद और लाल फूल हों।
हो। प्रसरित हो रहा है प्रणय रस का सागर जिसमें ऐसे राजा ने स्वयं मुख देखकर, मानो स्नेह महावृक्ष की
कली के समान अपनी अंगुली से उसे पीठासन बताया। तुष्ट होकर वह बैठ गया। राजा ने उसका सम्मान ____ अपनी छावनी को वहीं छोड़कर, भूमि में महान् वह अपने कुछ सुभटों के साथ साकेत जाकर, भुवन किया। सभा में उसका पौरुष परम उन्नति को प्राप्त हुआ। आग की तुलना में कोई दूसरा उष्ण नहीं है । परमाणु में श्रेष्ठ राजा (भरत) के द्वार पर हाथ जोड़कर स्थित हो गया। प्रतिहार ने उसे शीघ्र प्रवेश दिया और चक्रवर्ती से अधिक दूसरा सूक्ष्म नहीं है। आकाश के आँगन से अधिक महान् दूसरा नहीं है। कामातुर के समान दूसरा को प्रणाम कर उसने निवेदन किया- "विषधर नर और विद्याधरों से सेवित हे देव, देखिए यहाँ जय प्रणाम कोई संगी नहीं है। जिन को छोड़कर कौन त्रिलोकस्वामी हो सकता है ? तुम्हें छोड़कर सुभटों में अग्रगामी करता है।" तब उसने अपनी विशाल दृष्टि उस पर डाली मानो चन्द्रमा के विकसित नीलकमल की माला कौन है ?
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