Book Title: Adi Purana
Author(s): Pushpadant, 
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

View full book text
Previous | Next

Page 562
________________ जोडविना सोपडिररिकन डलधुतलहट पहोंने रणेपहलें जयमद्धंकाश्मसिहनावाश्य लणविविसाउजनमहं गंगाणियसिविरहाउसुचडिपडवेयहमहाकरिदीनदियामाना ययमहादरिदे चमुचलियअणुविदिउँपयाण पतठसुरसजिलमझमाजाअविगगहसारर सामवजाटतथाणकलराजगल जोशवगंगहसुसलिलतरंग जोयश्कतहतिवलीवर जागविगंगहलावतलवाजायश्कतवर जाहिरामण जायविगंगव्हयफल्लकमलु जायश्कतह पिउदयणकमल जोगविगंगहवियरतमक जोयश्कतहवलदाहरल जागविगंगहमोतिषकपर ति जायस्कतहसियदसूणपति जोगविगहमन्त्रालिमाल जायश्कताम्मल्लपालाधनानि मगेहिणि यम्मदवाहिणि दविसलायणजहा मैदाणानसुददाशप दासझाएतेहाराजाका दंडलमयागल सरिसलील तहिंअवसरहारधरिपाल सङ्कवकवरणपयलतदाणु वडजलवि लतबोलिजमाणु अवलोगविरुद्रामियक मंगापमुदकुमाख्दुकुशालग्नयुक्तकळताले हाहावयहिटगरूयरालादाहापयडहकमवलासणारयप्पाणावमुलायणाय गहतर। थरहरियाणाए देवंगवळमणियूसगाए वादविण्वारियवशरणाग कॅरिकन्सुिरसरितारि पायनिंधणसंपत्तियकामलाउ सहरिख्यहिसाणातिलान निविसहनिनसुरसरिहित हरिसेनाच २२ घत्ता-जो दुःखित था उसकी परिरक्षा कर दी गयी। जो दुर्लभ था उसे पा लिया। तुम्हारे रहते और युद्ध में प्रहार करते हुए हे जय ! मुझे क्या सिद्ध नहीं हुआ!॥६॥ घत्ता-जब सुख देनेवाली मन्दाकिनी (गंगा) राजा को वैसे ही दिखाई दी जैसी अपनी गृहिणी, काम की नदी सुलोचना॥७॥ यह कहकर राजा ने महान् जयकुमार को विसर्जित कर दिया। वह तुरन्त अपने शिविर में गया। वह उस अवसर पर इन्द्र के ऐरावत के समान लीलावाले उसके हाथी को मगर ने पकड़ लिया। प्रगलित विजयार्ध महागजेन्द्र पर आरूढ़ हुआ मानो दिनकर उदयाचल पर आरूढ़ हुआ हो। सेना चल पड़ी। उसने है मदजल जिससे ऐसा वह गज वधू-वर के साथ अत्यधिक जल के आवर्तवाले हृद् में जाने लगा। प्रिय के प्रस्थान किया। वह गंगा के जल के मध्यभाग में पहुँचा। वह गंगा की सारस जोड़ी को देखकर कान्ता के दुःख को देखनेवाली सुलोचना ने जोर से 'हा' की आवाज की। उसकी (गज की) पूँछ कक्षा के मध्य लगने स्तनरूपी कलशयुगल को देखता है। गंगा की सुन्दर तरंग को देखकर अपनी कान्ता की त्रिबलि तरंग को पर, तथा हा-हा शब्द का कोलाहल बढ़ने पर, अपनी कान्ति से सूर्य को परास्त करनेवाले हेमांगद प्रमुख देखता है। गंगा के आवर्त भँवर को देखकर कान्ता की श्रेष्ठ नाभिरमण को देखता है। गंगा का खिला हुआ कुमार यह देखकर वहाँ पहुँचे। इसी बीच, जिसका आसन काँप गया है, तथा जो देवांग वस्त्रों से पवित्र निवास कमल देखकर प्रिय कान्ता का मुखकमल देखता है । गंगा के विचरते हुए मत्स्य देखकर कान्ता की चंचल में रहनेवाली है, ऐसी शत्रु का विनाश करनेवाली वनदेवी ने गज को गंगा के किनारे पर ऐसे खींचा मानो लम्बी आँखों को देखता है। गंगा की मोतियों की पंक्ति देखकर वह कान्ता की श्वेत दशनपंक्ति देखता है। धनसम्पत्ति ने कामदेव को खींचा हो, मानो अहिंसा ने त्रिलोक का उद्धार किया हो। आधे पल में वह सुरसरि गंगा की मत्त अलिमाला देखकर कान्ता को नोली चोटी देखता है। के तट पर ले जाया गया। Jain Education Interations For Private & Personal use only www.jan543.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712