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मएलकालि लरिकबिजउवाणिवंधु पवर्णदोल्पाघोलतार्थिधु ममरी पहचपिणकरिमाए |
जरुकहिकावापासाएमईजाणिवारणकपणा जाजपिटमदनविश्वकपर्णण साक्टिम्सा उखलकालियागमणिमकिवियश्कालियाण्याचनविहउअवयरियामामासशिपाया पासविकटिवितानमनमारिसिधसबलपासुहाउसुकराकदफलणाघतामाज्ञा
दियबहदिसमुधारहिडसशरिउपासमिहिधरपई
सश्चमकाइमलनशा मधुविसुलायाचंदहार। गंगादेव्यामधेस
गमगंगादेवयनियनिवास चाणविवारपुणगिरिडग रसुखोवपाको
उगठरुयत्नजामरिंडावपम्मसोकसंजोयणाए एक जाकरमा
हिंगिसमठमुलायमाए अश्त्रकाणेनिसपूजाम्य पाहे खबरमिकपतदिहताम्हादावपहावश्कहिलणड मात्र उपङजम्मतरुसच हानाहमादविलवंतियाहिं कुलना
चियपणयंगणतिवाहि सिंधिचंदणमासियजलण या सासियलयमराणिलण पारावयमिडणालायणण महावियमणमासालपण दारइयरहार
पवन के आन्दोलन से हिल रहे हैं चिह्न जिसके ऐसे तथा बैर का अनुबन्ध करनेवाले जयकुमार को देखकर, क्रूर मगरी बनकर, कुद्ध उसने गज को खींचा। आसन काँपने से मैंने जान लिया कि जो मृगनयनी अकम्पन चन्द्रमा के हास्य के समान सुलोचना की इस प्रकार स्तुति कर गंगादेवी अपने निवास स्थान के लिए राजा से उत्पन्न हुई है वह दुष्टा काली के द्वारा क्यों मारी जाये? पापवृत्ति के द्वारा मुनिमति का स्पर्श क्यों किया चल दी। तब गिरीन्द्र की भाँति उस गजेन्द्र को प्रेरित कर राजा जय गया और हस्तिनापुर पहुँच गया। सुखपूर्वक जाये? यह विचार कर जब मैं यहाँ अवतरित हुई तबतक वह दुश्मन भागकर कहीं भी चली गयी। मैंने शक्ति सप्तांग राज्य का परिपालन करते हुए जब बहुत समय बीत गया, जब प्रचुर प्रेम और सुख का संयोजन से गज का उद्धार किया, और तुम्हें अपने पुण्य के फल से यह सुख प्राप्त हुआ।
करनेवाली सुलोचना देवी के साथ एक दिन वह दरबार में बैठा हुआ था तब आकाश में उसने विद्याधर की घत्ता-मल (पाप) दूर होता है, बुद्धि प्रवर्तित होती है. धन-धाराओं से दिशा दुहो जाती है, शत्रु नाश जोड़ी देखी। ' हे प्रभावती देवी, तुम कहाँ' यह कहता हुआ और जन्मान्तर की याद करता हुआ राजा मूच्छित को प्राप्त होता है, निधि घर में प्रवेश करती है। धर्म से क्या नहीं प्राप्त किया जा सकता?॥१०॥ हो गया। तब हे स्वामी, हे स्वामी, इस प्रकार विलाप करती हुई कुलपुत्रियों और पण्य-स्त्रियों के द्वारा चन्दन
मिश्रित जल से सौंचा गया, चंचल चमरों की हवा से वह आश्वस्त हुआ। कबूतर के जोड़े को देखने से स्नेह का अनुभव होने के कारण प्रिया सुलोचना भी मूच्छित हो गयी।
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