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यशसोविनिबंधापमान मश्माएकुमारूणरहिवण झुक्कियफलकिहननाधारावचतिहिंस
खरगणिमाह वामन जयसाहयुधपथपियर्दिछ
लिनकयुममयरुसरनियरे गाउनणरुपुरणिपनम बेघेवककय पुराजावलाच
रजयविलासुजयण्यहोकेरल वहातापचास मापासिकायट
विवराम रहनिहियटकमारुविकायठ करकलि अक्कसचामपायन जलाइरसत्पन्हुसमुख्यधर विजयाण्डपदाहिनपुखर तकणसमलवियरस वतनिणगयजिणलक्षणहापरमएलतिए जम्मावा सपासविवरम्मुई बंदिव्यरुङतिमापूजासह मिलियपरिहहिमलियपाणिहिंमुहकहरूमाम सुललियवाणिहि वझमिकताअनएप्पट मोह विसालमूखुविवि चगावचसुहासासाहयु सकलतललिमयागहउ गहियासकवडाविहातणुप २६४
तो भी वह बन्धन को प्राप्त हुआ। हे माँ ! देखो, कुमार राजा ने अपने दुष्कृत का फल किस प्रकार (जयकुमार) अपने ससुर के घर में प्रविष्ट हुआ। पुरवर में विजय का आनन्द बढ़ गया। सभी लोग उसी समय भोगा?।।३६॥
परभव की तृप्ति से युक्त परमभक्ति से जिनभवन गये। जन्म और आवास के बन्धनों से मुक्त, त्रिलोक की ३७
पूजा के योग्य अर्हन्त की सभी राजाओं ने मिलकर अपने हाथ जोड़कर मुखरूपी कुहर से निकलती हुई सुन्दर इस प्रकार कहते हुए घनस्तनोंवाली सुरवनिताओं ने जयकुमार के साहस की प्रशंसा की। देवसमूह ने वाणी से वन्दना की-"बहुमिथ्यात्व के बीज से उत्पन्न यह विशाल मोहरूपी जड़वाला, (संसाररूपी वृक्ष) पुष्पों की वर्षा की। रुनरुन करते हुए भ्रमरों ने गान किया। जयकुमार का विलास और दैव की चेष्टा विपरीत विस्तीर्ण, चार गतियों के स्कन्धोंवाला, सुख की आशाओं की शाखाओंवाला, पुत्र-कलत्रों के सुन्दर प्रारोहों होती है। रथ में बैठकर कान्तिवान्, हाथ की अंगुलियों के अंकुश से गज को प्रेरित करता हुआ मेघस्वर से सहित, बहुत प्रकार के शरीररूपी पत्तों को छोड़ने और ग्रहण करनेवाला,
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