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विविमदापुआलालळिमश्तणुअस्सायरिअश्वसंकहिं वसुसमससकादि उहयगावेण विजापदा विणापरपाणपहरणहिष्णा पढरणश्कोतारंवायपश्मुसलाईघणघणईचाबाईचकाशचरवि मकाजतागलियसण चिनियमहणजयणामरापणशक्किदासहावण जित्रासदमदम जाया सिगहम्मिमिहासभाधारणलए अाहेराउससारलासाचमात्तत्रयालिफणिवासरगतिजा इंडसहदिछ दोपविखणेताय गडखाणी वासु नाविजयवतण संसिसासपतष जालाम्यतण जालिअदिसतेण अवहरमाणेण अहिंदिलवाणेण वायरधुरासाहय णिहविरहरहियादरम
लियधरसंडेपछवियरिङरुडे परिसमिदगिहाले पसरविसरमुल बहादविहतणावावरतणा मेघेअहमश्रका कृातार
कारितासण दहणायपासणधरिजऊसामागउचकवज्ञपियतणाघ सिपनायताशिमगता कात्रिचामिला
दानवों को ध्वस्त करते हुए लक्ष्मीवती के पुत्र जयकुमार को दूसरों के प्राणों का अपहरण करनेवाले, प्रहरणों पुत्र ने ज्वालाएँ छोड़ते हुए दिशाओं को जलानेवाले अग्नि के समान, नाग के द्वारा दिये गये बाण से रथ के को शंका से रहित आठ चन्द्र विद्याधरों ने, उत्पन्न है गर्व जिसे, ऐसी विद्या के प्रभाव से छिन्न-भिन्न कर मुखभाग और धुरासहित सारथियों को जलाकर, जिसमें ध्वजसमूह ध्वस्त है, शत्रुओं के धड़ नाच रहे हैं, दिया। कोत-कम्पण घनघन मूसल-चाप और चक्रों को चूर-चूर करके छोड़ दिया। शस्त्रों के नष्ट हो जानेपर गृद्धकुल परिभ्रमण कर रहा है, ऐसे भटयुद्ध में प्रवेश कर उसने आठों ही चन्द्रमाओं को तुरन्त बाँध लिया, चित्त में समर्थ, सहायता की इच्छा रखनेवाले पुण्यवान्, धन्य और वीर जयकुमार राजा ने शरमेघों को क्रूर शत्रुओं को सन्त्रस्त करनेवाले नागपाश से । क्रोध से लाल चक्रवर्ती के प्रिय पुत्र को पकड़ लिया। जीतनेवाले घर में जिसे सिद्ध किया था, उस नागराज का स्मरण किया। वह शीघ्र अवतरित हुआ। वह नागपाश घत्ता-जिसके पितामह जिन थे, और पिता राजाओं का स्वामी, और युद्ध में तीव्र दिव्य अर्धेन्दु उसे देकर एक क्षण में नागिनीलोक चला गया। तब विजयशील सोमप्रभ के
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