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संग्रामुकरिडून सन्युनिजनिजरा नत।
परवजसुधवलन पन्नावश्ससियरमेलापनहाइविमुकश्चक्कशानहेविरहरसिमरा श्वकरकवाणिसागमकिरतहिरण गउनवाजमश्नरलताचेणिनिमंतिहिंनसारि उस्यपिहिनामापविपिबारिख मुलरंगेपिरगसाश्म तनुजवसिमाश्वनिविसमज्ञान नारनिहिरणारंगिलतियण पारवश्वजिसमन्तउपरिणपपियसहिमड्डदावियरसरसमणमा लपखतमाशा काविसमावसरुहावनधारपिदहियणपश्हा तछारसदाहकिरुवधि यविहिपार्टिकाउंगासवत्रिकावितपाइजमड़पडिवपनामियतहिंउंसिवहकिदिएप।। जमविरुदतम्नविडिठ अहरविंसुपरिकणिदिविडिलाकाविसणशपिएकरूमाढायहि उसका
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यहाँ जय राजा का यश धवल हो रहा था और यहाँ चन्द्रमा का किरणसमूह दौड़ रहा था। यहाँ योद्धाओं के द्वारा चक्र छोड़े जा रहे थे और यहाँ विरह में चक्रवाक पक्षी विलाप कर रहे थे, इनमें कौन निशागम है और कौन सैनिकों का युद्ध है? भटजन यह नहीं समझते और आपस में युद्ध करते हैं। तब उन्हें चाँपते हुए मन्त्रियों ने हटाया और रात्रि में युद्ध करते हुए उन्हें मना किया। युद्ध के रंग में रोष से भरे हुए दोनों सैन्य वहीं ठहर गये।
घत्ता-युद्ध के मैदान में राजा के काम में मृत्यु को प्राप्त हुआ तथा तीरों के शयनतल पर सोता हुआ (वह) प्रिय रात्रि में सहेलियों के द्वारा उसकी भावी पत्नी को दिखाया गया।॥३४॥
ईया के कारण रूठी हुई कोई बोली-"तलवार की धार प्रिय के हृदय में प्रवेश कर गयी, जो उसमें अनुरक्त है उसे मैं कैसे अच्छी लग सकती हूँ? हतभाग्य में प्राणों से मुक्त क्यों नहीं होती?" कोई कहती है-'हे प्रिय, जो मैंने स्वीकार किया था वह हृदय तुमने सियारिन को क्यों दे दिया? जिसे मैंने पहले अपने दाँतों के अग्रभाग से काटा था वह (अब) पक्षिणी से खण्डित है।" कोई कहती है-'हे प्रिय, हाथ मत बढ़ाओ।
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