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तश्चमकरोसाणबन्धमाणियमिगतरवलदंझमयमचारिटमपलविहिवप्य ऋजाससंवरमा
लावण्यासासहपूजलियनवहर खिलोहियसिताउन दहशामलालार्कसकमईकाश्मड दक्मिापा
शमिजाविसइलाहापाइसणसमारणडाशय अर्ककति को
विताडियसनरसरिकिनकलय खपमहाञ्छ। बदिनामवश्वास बोधना
चरविवल किमसिद्धियवरिधिधारण सूराक्ष दसरखरवारण मेहपर्मराहिसंधाश्म गजमाणमेदा स्वाध्या हयखदिखयखाणामडलवाहिलवरका मिणिमपाचंचलरहरखालमाणघयडवरदिवविचित्र
नवपवरचक्कचास्वयिावसहरसिररिकासमुसा लल डिलमलकर सुखमिसविणमिमहापाहअधर अचंदणामक्किादर इधरापणारणगणेमुकार गडबडवाहविरविथक्का विजयघासकरिवरिचारूवर वालमदाहवसमणिबुटला चकदमझा कविहावेशविपरिवेसवेदिउणावरं यत्तहकमपश्हनिणालमा निधमणादरुणामविसालरिकेही
तभी मेरी क्रोधाग्नि भड़क उठी थी और दुष्टों के लिए यमदूत की तरह मैंने नियन्त्रित कर लिया था। पिता दिये गये। वे गरजते हुए मेघों की तरह दौड़े। अपने तीव्र खुरों से धरतीमण्डल को खोदनेवाले और उत्तम ने अपनी प्रच्छन्न उक्तियों से मुझे मना कर दिया था। लेकिन आज स्वयंवरमाला के घी से वह (क्रोधाग्नि) कामिनियों के समान चंचल मनबाले अश्व हाँक दिये गये। रथों पर उड़ते हुए ध्वजों का आडम्बर (फैलाव) असह्य रूप से प्रचलित हो रही है, वह शत्रु के रक्त से सिंचित होकर ही कम होगी।
था, चमकते हुए विचित्र छत्रों से आकाश ढक गया। चक्रों के चलने से विषधरों के सिर चूर-चूर हो गये। पत्ता-अरे यह अवसर है, कन्या से मुझे क्या? क्या मैं मार्ग नहीं समझता हूँ। जय अपने को योद्धाओं सैनिक हाथ में तलवार, झस, मूसल, लकुटि और हल लिये हुए थे। सुनमि और विनमि नाम के जो की पंक्ति में गिनता है मैं उसके साथ युद्ध में लगा"।। २३॥
आकाशगामी महाप्रभु थे और आठ चन्द्र नाम के जो विद्याधर थे युवराज ने उन्हें युद्ध के मैदान में उतार दिया।
वे गरुड़व्यूह की रचना कर आकाश में स्थित हो गये। अपने विजयघोष नामक महागज पर आरूढ़ होकर, २४
बालक होकर भी सैकड़ों महायुद्धों का विजेता वह व्यूह के मध्य में स्थित होकर ऐसा शोभित होता है मानो युद्ध के नगाड़े बज उठे। कलकल होने लगा। एक पल में चतुरंग सेना उठ खड़ी हुई. रक्षित और शिक्षित सूर्य अपने परिवेश से घिरा हुआ हो। वहाँ कन्या ने जिनालय में प्रवेश किया, नित्यमनोहर नाम का जो अत्यन्त तथा शत्रुओं का विदारण करनेवाले शूरों से आरूढ़ बहादुर हाथी, महावतों के पैरों के अंगूठों से प्रेरित कर विशाल था।
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