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मिछले छित्रसंबंवरेभालपरछले सल्लासमयकसमसस्थरावलि गहिनकुमारितणकियपंजील मेघवरिकेगलि सुलोचनामालन
निक्षेपन॥
गिलडसखसखसाकमहो दुम्मारिवाहियजयरामही ताडद्दसण्डहरुडजणु डबुडण समसिनसजणु रविकित्तिहरहिवदाकरिसणु अक्तिमतिमामडम्मरिसण मच्छरखतेतणपतरा नन डिदिसतदिधम्मूनिस्तन जहिरवदनतदिसयमक जर्दिमुणिनरुत्तहिदियनि तक जहिमदिवश्वदिखाईसंग जदिसुवपुतहिावसलपरिनतारणकरहेगवरणवानर वंडाघालवणुसहश्करिंदही हरिकरिधानाध्यापकादही सखलशयणहोतिरिदहो।।
भूमिस्थल-उरस्थल में माला डाल दी। उसने अंजली जोड़े हुए कुमारी को ऐसे ग्रहण कर लिया मानो कामदेव कहा- "जहाँ अहिंसा होती है वहाँ निश्चय से धर्म है। जहाँ अरहन्त देव हैं वहाँ इन्द्र है, जहाँ मुनिवर ने कुसुमों की माला स्वीकार कर ली हो। भरत शीघ्र ही अपने रथ के साथ साकेत चला गया। यहाँ युवराजों हैं वहाँ इन्द्रिय-निग्रह है। जहाँ राजा है वहाँ रत्नों का संग्रह है। ऊँट या गधे के द्वारा नर-समूह का अवलम्बन में दुर्बुद्धि बढ़ने लगी। युवराज अर्ककीर्ति का दुर्मर्षण नाम का मन्त्री था जो दुर्धर, दुर्जन, दुष्ट, दुराशय, सज्जनों नहीं होता। घण्टावलम्बन गजराज के शोभित होता है । घोड़ा, हाथी और स्त्री आदि समस्त रत्न नर श्रेष्ठ राजा को दोष लगानेवाला और मित्रसमूह को सैकड़ों भागों में विभाजित करनेवाला था। मत्सर से भरकर उसने के होते हैं।
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