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उियधवलहत्तध्यदंडशाटमा डाझंतरंदिहविसरिसई पदालियवणरुदिरोनशे वलिविसेषणंव पासरियावद्दश्कमअकबरनमन्त्रस्यपियरचललधारणायललिटतातलापल्यहक्किम छिकपका रसवसमजणियसकारहवडविधाहलरणालिदाससेदरालोसपुरणानगरकरुनस्यला विवारण वारिघरिणिमणिहारद्वारण तारुवरणणासरियहारण मरणदारुपतहिमहारणासाजर घणसंपसियासरा संखलराईकारखरखरा आदयायाविवाधया निम्तयागयानिमायामया तण किकरानणमारिया तणाराणाजणदारिया तमन्नयजपक्तिमयातमवाहणजमतिमय सापर हवराजोपसस सोणखयरोजापरवा तामपस्किपकेहिचिंजिदी मनपरिकिविणवतजियोफह
मेघशरुकउस
धवल छत्र और ध्वजदण्ड खण्डित हैं, ऐसे दोनों सैन्य
उरतल को विदीर्ण करनेवाला, शत्रुओं की स्त्रियों के मणिहारों का अपहरण करनेवाला, डरपोक मुखों से घत्ता-प्रगलित व्रणों के रुधिर से लाल और असामान्य युद्ध करते हुए देखे गये। दोनों ही सैन्य ऐसे निकलते हुए हा हा शब्द को धारण करनेवाला और मृत्यु से भयंकर था, जयकुमार ने अपने पंख लगे हुए लगते थे मानो युद्धलक्ष्मी ने दोनों को टेसू के फूल बाँध दिये हों॥२६॥
और हुंकार की तरह तीखे तीर प्रेषित किये। उनसे घोड़े घायल हो गये, ध्वज छिन्न भिन्न हो गये, गज भाग
गये और निर्मद होकर मर गये। ऐसे अनुचर नहीं थे जो मारे न गये हों, ऐसे राजा नहीं थे जो विदीर्ण न हुए उस महायुद्ध में, कि जो रक्त से मत्त निशाचरों से विह्वल, धारणीयों के द्वारा खण्डित आँतों से बीभत्स, हों, ऐसा छत्र नहीं था जो छिन्न-भिन्न न हुआ हो, ऐसा बाहन न था जो क्षत न हुआ हो, ऐसा रथवर नहीं आहत गजों के मस्तकों के रक्त से कीचड़मय, रस और चबों से नदी की शंका उत्पन्न करनेवाला, ऊँचौ बँधी था जो भग्न न हुआ हो, ऐसा विद्याधर नहीं था जो आकाश में न गया हो। जब पक्षियों के पंखों से उड़ाया हुई पताकाओं के समूह को उखाड़नेवाला, देव-सुन्दरियों के सन्तोष की पूर्ति करनेवाला, उदर ऊरु और गया, मग्गणों ( माँगनेवाले याचक और तीरों) के द्वारा कृपण की तरह तर्जित,
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