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सप्तमघाएकछियमनणसहछे लाहवंतकिरणनमग्नण धम्माभिवकिरकेणउसासणय पवझियकिरकणउनिहर पिछंचियकिरकण्ठाहवरा चित्रविचिन्नकणकिस्वलयर धम्मणि सियकेएनाविर स्वहिवतागिदिन्निादिना उचकणमाकुसपत्रावरिहंदहावदावय इहापकणजसरथपविदिहा काडासरुजजाहपवरासणुताहण्डनमुलरकाधणासा शिवायही हहिदिसविसमायणहिंपिहिखुणदंगपुरुहलाणारयहिंणामणिमिलविस णमिहवखणखहमाछजजरतावपजिसमालय परततहपहेलना संदणासंदापि सवावलहिं सकिरकहिणिविरहिनहि तिरकखरुप्यादिन्निश्शाच्चचामराईवाइन ईचदिसपलायसरजाले विज्ञाहरहरविनियकाले यस्वादिसावलिसहित पठेविनियम सालतिर सणमिमकवाधारठ किटतणवरिपरिवारटकोणकावितळनिहार लवाहणुपहरएकाविणचालश्यकतेलमग्नियशवठतणु सालसण्यणुपमलियनेला। बखुणालारसेवोलिनणादकाजावाददानवसपावशादणलरसरधावियदहादालातावप्तरमा हिउमदगडाघातसमजावणासिनझाइनाणासाहमुडाजगसझणसगंजानपण कामुणसंपपयुद्ध गजलहरुजलहराश्यविधातासमुणमिश्रादविवणमिमुद्ध
समर्थ उसने स्वयं अपने हाथ से धनुष चढ़ाया। कौन-से मग्गण (माँगनेवाले, और मार्गण = तीर), लोहवन्त हो गये। चिह्न चामर और वादित्रों ने भी सर-जाल से चारों दिशाओं को आच्छादित कर दिया और अपने (लोभ से युक्त, लोहे से सहित) नहीं होते, धमुज्झिय (डोटी से रहित और धर्म से रहित) कौन नहीं भीषण समय से विद्याधरों का अपहरण कर लिया। इस प्रकार दिशाबलि दी जाती हुई और नष्ट होती हुई अपनी होते? गुण (डोरी और दयादि गुण) से वर्जित कौन नहीं निष्ठुर होते ? पिच्छांचित (पंख और पुंख से सहित) सेना को देखकर सुनमि ने अन्धकार का बाण छोड़ा, उसने शत्रु परिवार को ढक लिया। वहाँ कोई भी कुछ कौन नहीं नभचर होते ? चित्तविचित्त (चित से विचित्त और चित्र-विचित्र) कौन नहीं चंचलतर होते ? ममं नहीं देखता, कोई भी वाहन और हथियारों को नहीं चलाता। यहाँ-वहाँ लोग सहारा माँगने लगे। नेत्र अलसाने का अन्वेषण करनेवाले (वम्मण्णेसिय) कौन सन्तापदायक नहीं होते ? बुद्धि से युक्त अपने दीप्ति से भास्वर लगे, जम्हाइयाँ छोड़ने लगे। जैसे सैन्य नीले रंग में डुबा दी गयी हो। जबतक लोग अभद्र नोंद को प्राप्त होते, और सीधे कौन (तीर और मुनि) नहीं मोक्ष को प्राप्त होते? शत्रु की देह के अंगों में प्रविष्ट हुए एक जय तबतक इस बीच में दिनकर तौर से दशों दिशाओं के पथों को आलोकित करता हुआ मेघप्रभ विद्याधर स्थित के ही तीर नहीं थे बल्कि दूसरे भी काम को जीतनेवाले थे। कोटीश्वर (धनुष और काम) ही जिनका प्रवर हो गया। आसन है उनके लिए अपना लक्ष्य और विनाश दुर्गम नहीं है।
घत्ता-बह सारा अन्धकार नष्ट हो गया, अपने सुधियों के मुख आलोकित हो उठे। विश्व में सज्जन घत्ता-अत्यन्त लम्बे और विष से विषम मुखवाले तीरों ने समस्त आकाश को अवरुद्ध कर लिया, मानो का संग मिलने पर किसे सुख नहीं होता! ॥३०॥ जैसे नागों ने मिलकर एक क्षण में सुनमि के बल को खा लिया हो॥२९॥
३० कुंजर ज्वर के भाव से भाग खड़े हुए, तुरंग (घोड़े) तुरन्त यम के मार्ग से जा लगे । स्यन्दन बरछियों मानो जलधर जलधर की गति दूषित कर चला गया। इससे सुनमि क्रोध से भरकर दौड़ा। सुनमि ने से क्षत-विक्षत हो गये, बताओ सारथियों के द्वारा वे कहाँ ले जाये जायें? तीखे खुरपों से छत्र छिन्न-भिन्न
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