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बलाविलमोमहातुन घडवणतसणाविसापूर दिचलरहण कियसगरखें सपश्यंचलिडिमांजर मारही पल असदेवतगयनपदमिलिनिजज्बादतजावदि मेमहगनसामरदहसबहिंस हरिधिनतावदिशा मतासिजछिकाशसिजशपएकतहिपमाङ्गलइसवणेगाव हालयससम्राविविनतिनिरहरंचमदेहणमतिमहाहव थिरथाहित्तिमदामणियाहा वामहस्सरमजालेजलतर कम्मरहाउपारिसिहिवपडतलावरसमससिविज्ञपिडिखलियउस हखसखटपिडवदलियम पछेतरेयसहायसहायही मुशवलोपविखयरायहोसणश कुमारधनलकणकसस्वहश्मामहारश्रवसदसणमिणिवायदिउमडवारठ तातण विरिउरणपचारिखकतामाहमहावा रजामूअणायकसूम किंकहिल्यसिवरुषकर तणयहो दादानिवटिसियरुविणयहा सम्मुडयाहियाहिमाणासहि पकडंतिकारस पेसहितासाजवनरनाहहसिया श्यवधाकणहहायालसियमाघना उडकापरया। रहोपमक यक्ककिनिसईकता हनणाषिजनधरणाला णिवपकपायडसनमाया म्वचविचारअप्पालि कापणहरिणाउरालिन पाएकटातहोपडहरसियनजयुगिलशि कालहसिनन सिमसुरभरफणिसंघायमाजाचारमग्नसंजायठ निदविडरविणा रईश्व
भुजबलि से लगा हुआ, महाभुज राजा अनन्तसेन भी अपने अनुज के साथ आया, दिव्य सैकड़ों लक्षणों से अंकित शरीरवाले पाँच सौ कुमारों के साथ।
घत्ता-पुरुदेव के पुत्र के पुत्रों ने जब कुमार जय को सब तरफ से घेर लिया, तब अपने एक हजार भाइयों के साथ हेमांगद आकर बीच में स्थित हो गया ॥२७॥
२८ वहाँ एक के द्वारा एक न त्रस्त किया जाता, न काटा जाता, और न भेदन किया जाता, न एक-दूसरे को मारा जाता, मानो जैसे लोभी के भवन में विह्वल समूह हो। वहाँ शस्त्र आते परन्तु निरर्थक चले जाते । जो चरम शरीरी होते हैं वे युद्ध में नहीं मरते । मानो महामुनि ही युद्ध में स्थित हों। मेघस्वर का जलता हुआ सर-जाल कुमार अर्ककीर्ति के ऊपर आग की तरह पड़ता है। आठ चन्द्रकुमारों की विद्याओं से प्रतिस्खलित होकर, इस तीर-समूह की फल और पुंख के साथ पीठ तक नष्ट हो गयी। इस बीच में असहायों के सहायक विद्याधर राजा का मुख देखकर कुमार कहता है- "तुम धवल बैल हो, गरियाल बैल नहीं, हे मामा, अब
तुम्हारा अवसर है । सुनमि, तुम मेरे बैरी जय को नष्ट कर दो।" तब उसने भी युद्ध में दुश्मन को ललकारा"हे कान्ता के मोह-समुद्र में डूबे हुए. हे मेघेश्वर ! तू मूर्ख है। तूने राजा के पुत्र के विरुद्ध तलवार क्यों खींची? हे द्रोही, तू गुरुओं की विनय से पतित हो गया। भाग मत, मेरे सामने आ, देखें। अपने तीखे तीर प्रेषित कर।" इस पर राजा जयकुमार हँसा कि ऐसा कहते हुए तुम आकाश में क्यों नहीं गिर पड़े?
पत्ता-परस्त्री के प्रमुख कारक (करानेवाले) तुम हो, अर्ककीर्ति स्वयं कर्ता है। मैं न्याय में नियुक्त हूँ और इस धरतीतल पर अपने स्वामी के चरणों का भक्त हूँ॥२८॥
२९ इस प्रकार कहकर उसने धनुष का आस्फालन किया। जैसे कानन में सिंह गरजा हो । मानो यम का नगाड़ा बजा हो। मानो विश्व को निगलने के लिए काल हँसा हो । सुन-नर और नाग समूह को डरानेवाला प्रत्यंचा का अत्यन्त भयंकर शब्द हुआ। निर्धन और विधुरों के विनाश में
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