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उक्सु मिनपात्रविर, मड समय । गमुचिलसई वियसंतिष्यचेणतरुविजहि तर्हिरु किन्तउनि | १३ | क्रुड माय इरु कमलपित्रालिंगिनिलश्य । क्रुड चपय तरु क्रूरचि ॐ काम उदरिस राम चिकूडककेल्लिकिंपि कोराउ वम्महचिनारैरश्वन क्रुडुर्मदा रेसा हिपलचियर चलदलमा इनि डुजाय उणामरूकलिचालउ मन्त्रचरका ररावा लउडका पिलुपलासर पहिलग्ननिरास हुडुकलिमलिकलाउ रमणीयपसरला हर लडुळडयणविन लेमन वहिउ विल्लिकुसुमरसचं वेवि कहि कुंद कुसुमदहि हसिमन कोश्लका डड परसियर दवणय कलर्क डयलयउत्तरं चंदणकह मपिंगविलिन छुडुकली हरविणमियां पुष्फळ रणईघित्र कुडलग्नई मिडलईस रकस अवरे पर दूर नई | चिपिरमड ऋडयहि मदिधु लियदिं सुमा सुरदि रबरंगा वलिय! हिं पावरपाल कलिनादीनहिं चंद्रकवर्षानडण लावहि धवलयममंजरिधयमालाहां गुमुगुमं तम इलिहगेयालहि रायस कामिणिकयरमणिदि थिन वसंत पड वणवणेदि कुररकार कारंड निनाय हि नमिवात्तनि नायहिं सिमजल कणतंडल सोहा लहि। सिसि णिपत्त्रवरमरगय थालहिं । एालसस्य दलदल सरल किए घिचसे सण सहोबल लत्रिए। फग्नु
घत्ता - अंकुरित, कुसुमित और पल्लवित वसंत समय का आगमन शोभित है। जिस बसन्त में अचेतन तरु भी विकास को प्राप्त होते हैं उसमें क्या मनुष्य विकसित नहीं होता ? ॥ १३ ॥
१४
शीघ्र ही आम्रवृक्ष कण्टकित हो गया, मधुलक्ष्मी ने आलिंगन करके उसे ग्रहण कर लिया। शीघ्र चम्पक वृक्ष अंकुरों से अंचित हो गया मानी कामुक हर्ष से रोमांचित हो गया। शीघ्र अशोक वृक्ष कुछ-कुछ पल्लवित हो उठा मानो ब्रह्मरूपी चित्रकार ने उसकी रचना की हो शीघ्र ही मन्दार की शाखा पल्लवित हो गयी मानी चलदल (पीपल) को मधु ने नचा दिया हो। शीघ्र नमेरु ( पुन्नाग वृक्ष) कलियों से लद गया और मतवाले चकोर और कोरों की ध्वनियों से गूंज उठा। शीघ्र ही कानून में टेस वृक्ष खिल गया और पथिकों के लिए विरहारिन लगने लगी। शीघ्र ही जुही का पुष्प समूह खिल उठा और रमणीजनों में रतिलोभ बढ़ने लगा। शीघ्र ही भ्रमररूपी विटजनों में मद बढ़ गया और उन्होंने लताओं के कुसुमरस को चूमकर खींच लिया। कुन्दवृक्ष अपने पुष्परूषी दाँतों से हँसने लगा और कोयल ने मानी काम का नगाड़ा बजाना शुरू कर दिया।
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दमनक लता से प्रयुक्त भितितल और चन्दन के कीचड़ समूह से लिप्त
धत्ता - शीघ्र ही केलिगृह बना दिये गये और उनमें पुष्पों के बिछौने डाल दिये गये। शीघ्र ही वेगयुक्त मिथुन रति में रत हो गये ।। १४ ।।
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सघन मधु के छिड़काव और फूलों की सुरभि रज की रंगोली से धरती रंग उठी। वसन्तरूपी प्रभु, नव रक्तकमलों के कलिकारूपी द्वीपों, मयूररूपी नट के नृत्यभावों, धवल कुसुम-मंजरियों की पुष्पमालाओं के गुनगुनाते हुए भ्रमरों की गीतावलियों, राजहंस की कामिनियों द्वारा किये गये रमणों के साथ उपवन भवनों में स्थित हो गया। कुरर, कीर और कारंज पक्षियों के निनादों के द्वारा जो मानो स्तोत्रसमूह के द्वारा वर्णित किया जा रहा हो। श्वेत जलकणों से चावल की शोभा धारण करनेवाले, कर्मालिनी के पत्तों की पंक्तियों की थालियों के द्वारा, खिले हुए कमलों के समान आँखोंवाली बनलक्ष्मी ने मानो उसे शेषाक्षत समर्पित किया हो।
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