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आणि सुविउको कह लु दिष्म सेरिगुरुखमिलिय उवल मेरुधारुज्गलिए दिपसरु तणि सुविचलि उसर हेसल चल्लिउयूडिसडम घमुद्दणु चक्ककिचिना मंतोनंद चत्रिवलिरह वखजाउड बलिउ घाणरड! शंकुसुमान गोयरविज्ञा हरराणा गंपिसनरघरेखा सोणा पड़ हो चकपणु पुण विउ आवदि दसणे तरुणेच डादियतावादी सहभाग
यह सुनकर कुतूहल हुआ। भेरी बजा दी गयी और भारी बल के साथ सेना इकट्ठी हुई। मेरु के समान धीर एवं विश्वरूपी कमल के लिए सूर्य के समान भरतेश्वर यह सुनकर चल पड़ा। तब शत्रु की गजघटा का मर्दन करनेवाला अर्ककीर्ति नाम का उसका पुत्र भी चल पड़ा. बली रथवर वज्रायुध भी चल पड़ा। घनरव भी
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सुलोचना कर स्व
व्यवरा मंडपुरचना
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चला मानो कामदेव हो। इस प्रकार मनुष्य और विद्याधर राजा जाकर उस मण्डप में आसीन हो गये। जबतक राजाओं द्वारा अकम्पन को प्रणाम किया गया तबतक तरुणी (सुलोचना) को रथ पर चढ़ा दिया गया। धाय के साथ
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