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लविउमएमहियसमुन्निहनराजनिजादशाहोणमहोतंलायखसुमश्कश्म पडगाडवपअविरोदणसयवरमंडण होत्यकासविणेहहोखंडशिना जंबुजा सराणापरिणयमश्ण सुमखड़णनछिला परियाणनिहीताबज़गशतसवलनामसमकिन वा विमायगामिणाधवो कुमारिखद्यपंधवो मुरोविचितिचंगा तमतहिंसमागमतिणाम मंडळकट विचित्रवित्तिसोहिन वगणाहिरोहिताललसलारणालाघुलतफमालनमा समतमतसिंग गहनलग्नासिंग सपालनहायलो लमणणासामलो कहियिहमधि। जरासरोधकंजकेसरी कहिषिरुपायामला विचित्रनामंडलो कहिंपिवळकपमुसयस पिववत यावत्रणकलासमा महतयुपसंगमा मणणादिराशा, रइयजामहाचकहिपि दसरसाबहरणाश्तथिलावामित्रतामिणविलासदिनापिदिनमानियवास संखक्कंदप्पणो असेसमगलासनीपमायगायपासून विसालमनवारण दिवायसवार गोधन मंडठकिवणमिदेवरावकमाणिकर्दिडियट जहिंदासस्ताहिजेसहावासस महिदिपड़ियगावाजदिकमारिथहिलाश्यावरूसोपारहाणाहसंयवरूपविष्ण विकाश्मवत्र लडपल्लहिकिकरस्वलं अविषयकुमहोउमलासिन हैनहकारमहर्हसि
तब सर्वार्थ मन्त्री बोला- "यदि मनुष्य को छोड़कर, तुम्हारी पत्री का वर विद्याधर हैं, तो किसी अन्य में से आच्छादित ऐसा लगता है मानो शुकों की पूँछों के रंग का हो। नवतणस्थली के समान और महान पुण्यों वह लावण्य नहीं है।" सुमति ने कहा - "हे प्रभु, मैंने स्वीकार किया। सबसे अविरोधी बात यह है कि का संगम, मणियों की शोभा से शोभित और कान्ति से आच्छादित, कहीं रक्त दिखाई देता है जैसे वधू के स्वयंवर किया जाये, जिससे किसी के भी स्नेह का खण्डन न हो।"
द्वारा अनुरक्त हो। श्री के विलास से दीप्त जो नवसूर्य के समान स्थित है, मोतियों के अर्चन से निहित, शंखपत्ता-इस प्रकार बहुशास्त्रज्ञ परिणतबुद्धि सुमति मन्त्री ने जो प्रार्थना की उससे कार्य की गति होगी, मंगल-कलश और दर्पण से सहित, अशेष मंगलों का आश्रय, प्रगीत-गीतघोषोंवाला, विशाल मत्त गजोंबाला यह जानकर सबने उसका समर्थन किया॥१६॥
और सूर्य की किरणों को आच्छादित करनेवाला।।
घत्ता-हे देव, मैं मण्डप का क्या वर्णन करूँ! अनेक माणिक्यों से जड़ा हुआ वह जहाँ दिखाई देता उस अवसर पर विमानरूपी लक्ष्मी का स्वामी और कुमारी का पूर्वजन्म का भाई चित्रांगद देव वहाँ आया। है वहीं सुहावना लगता है, मानो स्वर्ग ही धरती पर आ पड़ा हो॥१७॥ उसने सुन्दर मण्डप की रचना की, जो विचित्र भित्तियों से शोभित, झूलते हुए तोरणमालाओं, हिलती हुई
१८ पुष्पमालाओं से युक्त, मतवाले भान्त भमरोंवाला और अपने शिखरों से आकाश के अग्रभाग को छूता हुआ। जिसमें कुमारी स्वयं अपने वर की इच्छा करती है ऐसे पति का स्वयंवर प्रारम्भ किया गया है। तुम्हारे नीलमणियों से निबद्ध भूमितल ऐसी लगता है जैसे अन्धकार से काला हो गया हो, कहीं पर स्वर्ण से पीला बिना किंकर वत्सल उस नवीन से क्या ? आप शीघ्र चलें, किसी दोष के कारण यहाँ अविनय न हो, मैं तुम्हें कमलपराग से युक्त सरोवर हो, कहीं चाँदी से स्वच्छ ऐसा लगता है मानो प्रदीप्त चन्द्रमण्डल हो, कहीं वस्त्रों बुलाने के लिए भेजा गया हूँ।
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