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णपसारएणंदासरे सुरणविपदावणदासरांपासहपरिसमखामसरारण यणाजालंत सुलोचना
बिलवियदारय युनियपहसतखलकमले पडदिहउंजिणसेसाकमले घिना तेलातपियामका अकैपूर्णपिता
पविजियु णनमटरदकरविउतपलिपुणरिणिहिडसि कछजिनमोल
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करियारणउलणेविविसन्निया गमतीमारिणिनगेडपराच्या सायदावित्तचितसंदृश्य राख्यासचुरेजसरियन राणमा तिमसमारिन तणयदिणगलियतमकडई
तिताग्रहविगडमुनिरक्ष्यश्चरितर अवलायर होलणवचरश्नघरकमारिकन्टिकिज्ञशका
श्रवंपणराजा सविकलगुणवतदादिलाइसायरमतिचबासररह
सुलोचना पुत्र मडायकाकाउचकवश्इतण्रहदायादतासुकरा
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बाआरतमंत्र किया किमतलाससामपासहलातापना मगरंजा अहश्रापरणामुपहजपाएपश्वरकाह अउसईखरु रहवरुवालनजाउडघणसरु सबळेपण
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नन्दीश्वर द्वीप में फागुन के आनेपर, शीघ्र देवेन्द्र द्वारा नमित नन्दीश्वर द्वीप में, जिसका शरीर उपवास के श्रम से क्षीण हो गया है, स्तनयुगल के अन्त में हार लटका हुआ है, ऐसी पुत्री ने हँसते हुए मुखकमल से जिनपूजा के कमल के साथ राजा को देखा।
घत्ता-त्रैलोक्य पितामह जिन को प्रणाम कर, नवपराग से अंचित और मधुकरकुल के मुख से चुम्बित उस कमल को राजा ने अपने सिरपर धारण कर लिया॥ १५ ॥
१६ पिता ने प्रिय वचनों से पुत्री का सत्कार किया और भोजन (पारणा) करो यह कहकर उसे विसर्जित
कर दिया। सुन्दरी गयी और अपने घर पहुंची। पिता के मन में चिन्ता उत्पन्न हुई। उसने सब भटजनों को दूर हटा दिया। राजा ने मन्त्री से विचार प्रारम्भ किया-"ऋतुदिन में (मासिक धर्म के दिनों में) कन्या के गलित और लाल आठों अंग मुझे इस प्रकार कष्ट देते हैं मानो कुपुत्र के द्वारा किये गये दुश्चरित हों, इसलिए शीघ्र नये वर को खोजो। कुमारी कन्या को घर में कितना रखा जाये ! किसी कुलीन और गुणवान् ब्यक्ति को दी जाये।" सागर मन्त्री कहता है - "चक्रवर्ती का पुत्र, कमल के समान मुखवाला अर्ककीर्ति है, कन्या उसको दीजिए, किसी दूसरे लोक-सामान्य सामन्त से क्या ?" सिद्धार्थ (मन्त्री) कहता है कि प्रभंजन नाम का सुन्दर राजा है, जो मानो साक्षात् स्वयं कामदेव हो। रथवर बली वजायुध और मेघेश्वर भी हैं।
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