________________
ago
वज्ञसेखराजावीक ताराणीवज्ञानाचा
आदराबवावलव लनाशावरसविडयवस्मयाचित्रंगनणामणुजयन सुरजायदाववविपससमय अबराइमहायडले चरण यसहलाऽविचमसहाय जायाजयराथहोइहसाय हिमगवह विमाणवाख मस्तिप्पिषजम्महामाणवास श्रायुमश्वरूजापाठसुवाद्धाणडविणाममहर तवाढ अहमिडकंपण्य पादधणमविनेगरुअपाट जवाजघरवशिवतास। राजहोमप्पलखेडारिवास होताविरुवाहवाहवणासाचनारिबिसङ्गजसेण तदबिह गञ्जमहासन्है ताहजेखरसिधुरववाह ससणहाजइसहायण्मु काहाश्यसमियसायास। यालेपिपुलवकर्यकरमडात परिकसउसापडि वाणिउनेखरखासक्षम सिमणि मकवगणतमाघचाहिमतहिंगलारहि धुवनवाणदिनासम्माधणदाणे धणदेठ २४
बरसेन भी बैजयन्त में हुआ, और चित्रांगद जयन्त नाम से उत्पन्न हुआ। प्रशान्तवदन भी देवलोक से चयकर प्रफुल्लमुख अपराजित हुआ। ये शार्दूलादि ( सिंहादि) चारों सहायक भी युबराज बज्रनाभि के इष्ट भाई हुए। अधोगवेयक विमान के वास को छोड़कर, मानव जन्म में आकर मतिवर सुबाहु हुआ। आनन्द भी महन्तबाहु के नाम से उत्पन्न हुआ। अकम्पन अहमेन्द्र पीठ हुआ। और धनमित्र भी वहीं पर महापाठ हुआ। बजजंध के जन्म में, जबकि वह उत्पलखेड नगर का अधिवासी राजा था, उस समय उसके जो भृत्य थे वे
भी ( पूर्वोक्त) विधि के वश से, यश के साथ चारों ही उत्पन्न हुए। वे देवेन्द्रगजपति के समान गतिबाली उसी महासती देवी के गर्भ से जन्मे । स्नेह से पूर्ण जेठे सगे और अपने भाइयों के लिए द्वेष्य कौन होता है ? पूर्व जन्म में किये गये कम छन्द का पालन करनेवाला वह प्रतीन्द्र केशव भी वणिकपुत्र कुबेर का सुरति में अपनी मति आसक्त रखनेवाली अनन्तमती से पुत्र उत्पन्न हुआ।
घत्ता-गम्भौर नगाड़ों के बजने पर बन्धुवर्ग अत्यन्त आनन्दित हुआ। सम्मान और धनदान के साथ उसका नाम धनदेव रखा गया ॥२॥
१. सिंह - विजय सुअर बैजयन्त, नकुल जयन्त, वानर - अपराजित, मतिबर मन्त्री - सुबाहु, आनन्द पुरोहित
- महाबाह, अकम्पन सेनापति - पीठ, धनमित्र सेठ महापीठ, श्रीमती का जीव - धनदेव ।
Jain Education International
For Private & Personal use only
www.jain495y org