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तर की विस्वन विनासनार्थे जिन जाकररंग।।
संतिकुम्भु पार |||जाउडल डिलरसेणायं दुई वहिसित्राजि सरविवश हिमकण कण कणा लिवियारदि घडवत् द्वियपय घयारहिं मुणिणि डहासय हार हैं चंदपतो तडिलवर धारहिं प्रज़ियायला महि कवलय व उलमडला महि सं आई व थोत्राला वहिं सावियाईमुवि सुहिता वादी के चणि। म्मिसमुणिडिमार पाणामणिमर्क हर्मियूरालय दसदियिगयरं कारविसहरु संवियाउचर वा सजिघंटउ, पहेहेपरेश्नतोरणमा लव पंत जंतपि वपसासु हालउ दिपई दिपसारकर्मताण में अरु आहारासह दाई समिदाह करजगाइड सहदि निघरघा रेकारुङघस्वर्दि दिलाईकारुम्पेरणदिशाई दीणाणा हहिची रहि राई पोसकसी खुदा देव राइसवाइपाल अपघत्ताध मिदिरापनि डक्किम रण्डकिय रायायनहि जगसंवर जिवनरवतिहजणवः ॥ १॥ (सीडवमायया नसरु जिपवर २५३
शान्तिकर्म प्रारम्भ किया।
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हिमकण और कनककणों की पंक्तियों के समान परिणामवाली घड़ों से गिरती हुई दूध और घी की धाराओं, मुनियों के अनिष्ट और दुष्ट आशयों का नाश करनेवाली चन्दन से मिश्रित उत्तम जलों से, जाउड देश में उत्पन्न केशर से लाल जिनेश्वर प्रतिमाओं का अभिषेक किया । भ्रमरकुल की घरस्वरूप कुवलयबकुल-मधु और कमलों की मालाओं से पूजा की। बहुत-सी स्तोत्रावलियों से संस्तुति की, विशुद्ध भावों से भावना की। स्वर्णनिर्मित मुनि प्रतिमाओं से युक्त, नाना मणिकिरणों के समूहवाले, दसों दिशाओं में जानेवाली (गूँजनेवाली) टंकार ध्वनि से रचित चौबीस घण्टे लटकवा दिये गये। पथ-पथ में बन्दनवार सजाये
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गये जो आते-जातेहुए राजाओं के नेत्रों को सुहावने लगते थे। जिन्होंने सुख-परम्परा दी है ऐसे अभय, आहार, औषधि और शास्त्रों के दान दिये गये। भूमि-दोहन और गायों का दोहन करनेवाले गृहस्थों ने घर-घर में अर्हन्त की पूजा की। करुणाभाव से दूसरे दीन अनाथों के लिए वस्त्र और सोना दिया गया। राजा के द्वारा प्रेरित प्रोषधोपवास शीलदान और देवार्चन का लोग पालन करते हैं।
धत्ता- राजा के धर्मनिष्ठ होने पर जनपद धर्मनिष्ठ होता है, राजा के पापी होने पर जनपद पापी होता हैं, विश्व में जनपद राज्य का अनुगामी होता है, राजा जैसा चलता है, जनपद भी वैसा ही चलता है ॥ १ ॥
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सावयों ( श्वापदों और श्रावकों) में सिंह के समान अग्रसर होकर
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