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जेहा कश्द्रोहिंनिजिणेसर शाणिसणेविदेवेनुएवमरजेहाजिणधग्रामविलवादाहितिलवणत वासयलाकारहातपयडामरिखमातियागामियाजहानाहावाबासहितश्तहाध्झाहकाठ्याज पहजम्मतराउसमाढावबिसवकलवरामुदादादामियसासमवाझमहमानम्हतारङमराश्हा सश्चमवासम्रतिजगमा रिसिंघमापनामणएडदियकविलसासयरुसरहतण्ठ सनिमुपविन विमुख्यमण आहामिछन्नहापदहावि मरिहीमहकाठमठमुछियशा हाहासुरू कविलदायू रुसंखसुत्रपतियार भिमतणायदा कदाविषयदो नागपुणुकहरसहारवासिरिखालाकालादि। जलसेल बलवतमधरधरधरणलील पजेहानिधमायावहि यादमाहियलववाह मवदलमारा यणनवनीति यडिसनवनिमहिनिहिीत अवरवितवासनिकामयव ण्यारहरहालात मडलि यममुडवहवित्रणेन होहिनिमुन्नवक्रमामधेय दखवधम्मपरमधम्मु अवविजकपिविसिडक मुमु सवाईडरतिदिनासिटिंति मिहिमयविसमयधणवरिसिद्धिति मम्मूलियनिहाकमलिकंडानानर नाहसंथनिर्णिडाला जिणसंता सयवतण इंदिहरामखुखिज्ञार सयेलामख तकघल्लामाणनरहो नपाजशमानमोचायण्यामहादेवदेवा कयाणागितापनिवापासवा सरीरनससासमाबननारी धर्म देवसवर्णगावहारी नचावनचक्नवतमसल मदडामहकिवाणकराल धर्मदवपूर्णरिङगमा २५२
कितने चक्रवर्ती राजा और आप जैसे कितने तीर्थकर उत्पन्न होंगे? ॥११॥
होंगे, इसमें भ्रान्ति नहीं है। और नौ ही प्रतिनारायण भी धरती का भोग करेंगे। और भी तेईस कामदेव, १२
रौद्रभाववाले ग्यारह रुद्र, तथा मुकुटबद्ध बहुत से नामवाले माण्डलीक राजा उत्पन्न होंगे। तुम्हारा क्षात्रधर्म यह सुनकर देव ने इस प्रकार कहा-मुझ जैसे राग-द्वेष से रहित तेईस जिनवर इस भुवन में और होंगे और मेरा परमधर्म और भी जो विशिष्ट कर्म हैं, वे सब युगान्त के दिनों में नष्ट हो जायेंगे। अग्निमय और जो श्रीधर्मतीर्थ को प्रकट करेंगे। जिस प्रकार इनके, उसी प्रकार उन बाईस तीर्थंकरों के आगामी शरीर ग्रहण विषमय मेघों की वर्षा होगी। तब जिन्होंने तृष्णारूपी कदलीकन्द का नाश कर दिया है ऐसे जिनेन्द्र की राजा करने और छोड़नेवाले जन्मान्तरों का कथन उन्होंने किया और कहा-जिसने अपने मुखचन्द्र से चन्द्रकिरणों ने स्तुति कीको पराजित कर दिया है, ऐसा तुम्हारा पुत्र और मेरा नाती यह मरीचि श्री वर्धमान के नाम से चौबीसवाँ घत्ता-हे जिनसंत भगवन्त, आपके दिखने पर पाप नष्ट हो जाता है। और मनुष्य को सम्पूर्ण पवित्र त्रिजगनाथ और तीर्थकर होगा। तब द्विज कपिल जिसका शिष्य है ऐसा महान् भरत का पुत्र यह सुनकर केवलज्ञान उत्पन्न हो जाता है ॥१३॥ प्रसन्नचित होकर खूब नाचा। यह मूर्ख होकर मिथ्यात्व को प्राप्त होगा। मेरा अहंकार छोड़कर मरेगा।
घत्ता-कपिल का गुरु तथा सांख्यसूत्रों में निपुण देव होगा। विनय करनेवाले अपने पुत्र से आदरणीय ऋषभजिन बार-बार कहते हैं ॥१२॥
हे वीतराग महान देवदेव, आपकी जय हो। आपकी अनेक देव निर्वाण सेवा करते हैं। आपके शरीर
पर वस्त्र नहीं हैं, पास में नारी नहीं है। हे देव, आप सचमुच काम का नाश करनेवाले हो। आपके पास न श्री का पालन करनेवाले क्रीड़ा के विपुल शैल के समान बलवान् पहाड़ों सहित धरती को धारण करने चाप है, न चक्र है, न खड्ग है, न शूल है, न दण्ड है और न कराल-कृपाण है। हे देव, आप निश्चय से की लीलाबाले तुम्हारे-जैसे न्यायानुगामी ग्यारह चक्रवर्ती भूमितल पर होंगे। नव बलभद्र, नव नारायण भी शत्रुओं के लिए गम्य नहीं हैं।
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