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जय
करेविका सहइंड वक्षगयसरी जसव इस नए सोपंतील पहिला दरिधारण कुमारू यु पुस्वयरु झुणु कुरुश्रज्ञसाल सुरूकुंडलिनु वरसेपसेन समनिनिपदिजो वजन अहम राड, संणियविण3 तर्दिश्रमता । वणिभाग व वापरु फलासि अज रुतमिवासे समगोरड सुरुट्यइड प्रणुचिचंगडपछि संविनसम सुरवरसम् पाठिसुमारनि श्रहमी सरु सोख नियडे हा दिमागमाणिकपयडे जोसोडहंसएडरिय सीरु अम्हार सुभामवीरु लोलुनर्कखुरला देणमुलर जेचिरूगिरि कागणे पाउलुकाउ सु यज्ञमणहरुमयो प्रणुसंतमय नरणा हजार पुए हरिसमाणु गिधारण चाऊ ग्रपरजिन नामें निवक्रमारु पुतिमि सुरवास वास सुपसिद्दुआ है वतिमिरणास, आवेष्पिषुद्रउनुह माउ देहे साधक वीरुमड लाग्योद ज्ञाव जेधल देमन् वहिणि साधारणपरलोकहिणि ह ईनंददमंधालील बाइबलिहे लड प्रेससस्सील जा सिरिम चिरुण्डायवाय सालमे विधकरम्। पीआय व सावित्राण दिमहासा जणुमादे तमाश्एड कास परिसमिव सबल सुवाल के तिर किरक हमिलचावला रंगगड नडू बंद स्वधारि श्रणवरय इदि हम्भाणुयारि सोच कित्तिक हिंजिन नजाउ पुचित सरदारांना कह लहर। कर सिरिहर कश्पडि मतुमरेसर मजेदाप
तपश्चरण से अपने शरीर को क्षीण कर सर्वार्थसिद्धि का देव हुआ। फिर शरीर छोड़कर वह यशोवती का पुत्र यह अनन्तवीर्य है। पहला जो हरिवाहन कुमार था, वह सुअर फिर कुरुभूमि में आर्य श्रेष्ठ, फिर मणिकुण्डलदेव और वरसेन, फिर सामानिक देव फिर वैजयन्त, फिर बिनय से सम्पन्न अहमेन्द्र और फिर वह अच्युत देव च्युत होकर मेरा पुत्र हुआ। जो नागदत्त पलाश ग्राम का वणिक् था वह कुरुभूमि का निवासी आर्य हुआ।
धत्ता- फिर सुमनोरथ देव हुआ, फिर दुःख का नाश करनेवाला चित्रांगद राजा हुआ। फिर समता का संचय करनेवाला सामानिक देव, फिर जयन्त नाम का राजा ।। १० ।।
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फिर भी वह, जो माणिक्यों से रचित है और मोक्ष के निकट है (अर्थात् जहाँ सिद्धशिला कुछ ही योजन दूर हैं) ऐसे विमान में अहमेन्द्र हुआ। दुर्दर्शनीय पापों से डरनेवाला था, वह यहाँ हमारा बीर नाम का पुत्र हुआ। Jain E और जो लोलुप कन्दुक लोभ से मरकर पहले गिरिकानन में नकुल हुआ था, फिर अमृतभोगी आर्य मनोहर,
फिर प्रशान्तमदन राजा योगी, फिर सुन्दर सामानिक देव। फिर अपराजित नाम का नृषकुमार। फिर अन्तिम प्रसिद्ध अहमेन्द्र देव अन्धकार का नाश करनेवाला। वह वीर आकर तुम्हारी माता की देह से मेरे घरमें उत्पन्न हुआ। जो वज्रजंघ जन्म में मेरी बहन थी, वह अनुन्धरा जो मानो परलोक के जाने के लिए पगडण्डी थी, वह सुनन्दा की धर्म का आचरण करनेवाली सुशील कन्या और बाहुबलि की छोटी बहन (सुन्दरी) हुई और जो श्रीमती के जन्म में पण्डिता धाय थी वह परिभ्रमण कर यहीं स्त्री हुई है। हे महीश तुम उसे ब्राह्मी जानते हो। आज भी जन मोह से किस प्रकार खेद को प्राप्त होते हैं? यह समस्त भुवनस्थली घूम रही हैं, मैं कितनी भवावलियों को बताऊँ! रंगमंच पर गया हुआ बहुरूप धारण करनेवाला नट अनवरत दो प्रकार के कर्मों का अनुकरण (अभिनय) करता रहता है। ऐसा एक भी स्थान नहीं है जहाँ यह जीव पैदा नहीं हुआ।" तब भरत ने पुनः बीतराग ऋषभजिन से पूछा
धत्ता- कितने बलभद्र, कितने नारायण, कितने प्रतिनारायण, मुझ जैसे
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