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गुरुचरणारविंडसवेवळ अवरुसमंजसनुसावंत यसंणडविसिहपदरेवडडडपरणकयाविधरे बाघलामपंचपयारपयासियउ शिवचरितुजोपालकमलासपकमलाकमलमुदितहार
मुदकमखनिहालशानतहिरहसजन्य गणिपलबसुणिसणियतटहा करुजगए सोमप्रसुरामालमा मतीराणीन:श्या
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गुरु के चरणकमलों की सेवा करनी चाहिए और उसे सामंजस्य का विचार करना चाहिए। क्रोध में आकर विशिष्ट का परिहार नहीं करना चाहिए और दुष्ट का पक्ष कभी भी ग्रहण नहीं कहना चाहिए।
घत्ता-इस प्रकार से प्रकाशित नृपचरित का जो राजा पालन करता है कमलासन कमलमुखी कमला (लक्ष्मी) उसके मुखकमल को देखती है ॥८॥
करनेवाला सोमप्रभ राजा का चौदह भाइयों में सबसे बड़ा जय नाम का सुन्दर पुत्र गद्दी पर बैठा। कुरुवंश के उस राजा ने प्रणाम कर और हँसते हुए राजा से कहा कि पिता के मुझे राजपट्ट बाँध देने और स्वयं ऋषियों के रत्नत्रय प्राप्त कर लेने पर, और उसमें भी निष्पाप और कालुष्य से च्युत हो जाने पर तथा सुरवरों के द्वारा संस्तुत दान का प्रवर्तन होने पर, एकानेक विकल्पों को जाननेवाले ऋषभस्वामी के चरणकमलों के भ्रमर, घोर वीर तपश्चरण से अद्भुत चाचा श्रेयांस राजा के विरक्त हो जाने पर मैं दिशामुखों को देखता हुआ अपने भाई के साथ
गौतम गणधर कहते हैं - "हे श्रेणिक ! सुन, जब वहाँ भरत था तभी जिनभगवान के चरणकमलों में रत रहनेवाला कुरुजांगल जनपद के गजपुर का राजा सोमप्रभ था। अपनी माँ लक्ष्मीवती के मन को सन्तुष्ट
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