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सीलगुलिमहात्मा
नियचरखरतेविहांत मारुत्रवलियचवलसाडाधणु एकहि कौनयरानावदना
वासरेगमपंदपवणधम्मागदमपुधाणदिवादिहसालयतु करणमागनागिणी अमीशानवर्षा
साणवंदिल दिहफणिषश्समउच्चागए चम्मुसुणवसरलला लियगिए गयसवहरवणाविद्याप सादिहासकानयनाया। 111घला काउचरुविसहरुणाशणविविन्नविधम्सुणतश्मड़ा
लालाकमलताडिमरीतहिविनाश्ययरतशाकिसणारू पविंडऋतपुरा कहिमाशगिकहिलनविजाहिं मगरहविपरिवारणाहदासडजारणा मरेश्वरमामन्यात तणसानिमवकासससकर्कतिर्सकांसउड्ठपडिया
मी विदारणंग्यहाग दगियावासट पिसिणिकतहमश्याहासिउसयण
मनचा लपतमाणिबिलसिउ कृमहिलखलचरियापयासमि जामकिपिकिरपियसलासमिविविहाहरणकिरणराजमघा रुसावतार्दिजअवयरिउपरामरुपतिनसामग्रिक्लाया हिदिहितियारसरियकिदोयहि तणपानमणिविदाण हि लोयहंजुळविधम्मुवाकापहि दोसग्नहोणकामुदिति
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पुरवर के भीतर घूमता हुआ एक दिन नन्दन बन के लिए गया जो हवा से हिलती हुई चंचल शाखाओं से सधन था। वहाँ मैंने शीलगुप्त मुनि को देखा, उनकी वन्दना की और धर्मानन्द से मेरा मन नाच उठा। मैंने (यह सोचकर कि) काले और लाल धब्बोंवाले शरीर से शोभित बिजाति से नागिन कहाँ लग गयी। सरल-सुन्दर अंगोंबाली नागिन के साथ एक नाग को धर्म सुनते हुए देखा। एक साल बीत जाने पर मैंने अपने । इस प्रकार परिवार से आहत होकर वह अपने यार के साथ चली गयी। मैं कास पुष्प को कान्ति के समान नाग द्वारा छोड़ी हुई उस नागिन को फिर देखा।
अपने घर वापस आ गया। रात्रि में शयनकक्ष में नागिन का वह विलास अपनी पत्नी को बताया। मैं जबतक घत्ता-दीवड़ जाति का काकोदर (नाग) और नागिन दोनों को धर्म सुनते हुए। वहाँ पर भी जातीतर खोटी महिलाओं के चरित को बताऊँ और प्रिय सम्भाषण करूँ कि इतने में विविध आभरणों से घर को रंजित (जाति से भिन्न) स्नेह में अनुरक्त होनेवाले उनको अपने लीलाकमल से प्रताड़ित किया॥९॥ करनेवाला एक सुरवर अवतरित हुआ। मैंने उससे पूछा - 'मुझे क्यों देखते हो, मुझ पर विकार-भरी दृष्टि
क्यों करते हो? उसने कहा- 'क्या नहीं जानते, लोगों को तुम्हीं धर्म का व्याख्यान करते हो, किसी का भी दोष ग्रहण नहीं करना चाहिए।
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