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धर्म क्षमा से गौरवशाली होता है। धर्म का पहला गुण मार्दव है। आर्जव धर्म है और मायारत होना पाप और भी राजा को निरीक्षण करना चाहिए। प्रजा का धर्म और न्याय से परिरक्षण करना चाहिए। दुर्मति है। विचार करनेवाला सत्य वचनों का समूह धर्म है। शौच्य धर्म है, तप तपना धर्म है, समस्त वस्तुओं का होकर गाय चिल्लाती है, यह जानकर उसे तीव्र दण्ड से ताड़न नहीं करना चाहिए। जैसे ग्वाला गोमण्डल परित्याग करना धर्म है, ब्रह्मचर्य और त्याग से धर्म है। जिस राजा ने जानते हुए भी धर्म नहीं किया, पूर्णायु का पालन करता है उसी प्रकार राजा को पृथ्वीमण्डल का पालन करना चाहिए। जो राजा अकारण प्रजा को होने पर वह नष्ट हो जायेगा और राज्य उसे फिर नरक में गिरा देगा। इस प्रकार मैंने मतिशुद्धि कही, मैं कुछ मारनेवाला होता है वह राक्षस और यमदूत के समान है। दोष लगाकर कृषक-समूहों, निर्दोष ब्राह्मणों और भी छिपाकर नहीं रखूगा, राजाओं को अब शरीर की रक्षा बताता हूँ। आग में प्रवेश करना, सुन्दर शरीर को बेचारे वणिकों का भीषण धनापहरण करता है, बुड्ढों-स्त्रियों और बच्चों को सतानेवाला है वह लोगों की जला लेना, विषकणों को खा लेना, ऐसा मरण अच्छा नहीं। आत्मघात, महाजल में अतिक्रमण करना, पहाड़ श्वास-ज्वालाओं में जल जाता है और पापकर्म से बँध जाता है। दु:ख की ज्वाला लगने पर वह जीवित नहीं से गिरना, अपनी आँतों को घोल देना (संघर्षण) ये खोटे मरण हैं जो मनुष्य को घुमाकर दुर्दम भवपंक में रहता, वह देश में नहीं रह सकता, परदेश में उसे प्रवेश करना पड़ता है। जो राजा अनुरक्त प्रजा को सताता गिरा देते हैं।
है वह कुछ ही दिनों में स्वयं नष्ट हो जाता है। उसे सच्चे और अनुरक्त भृत्य का भरण करना चाहिए, जो घत्ता-मुनिवर के चरणकमलों में उपशम धारण कर जो संन्यास से नहीं मरता वह चौरासी लाख योनियों विपरीत है उसकी उपेक्षा करनी चाहिए। कार्य के उपाय और अपाय को जानते हुए, न्याय की देखभाल करते के मुखों में कष्टपूर्वक परिभ्रमण करता रहता है॥७॥
हुए राजा को
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