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तस्थचकीवर्मा
तरोराडलोनजेधम्मपविक्षित परिताश्तखयाउसोखतिन कुलमरणाहानुविससंकलुलकि जवहसदवासदसणणाणुचरिनालासें कुलुलखिझण्डनय
पदेसकरण मासें कलुलखिजरसहायोरेंदटकेढणवणुछदवारं साश्याणा इविदासजायठवायंकरकमणकलुभावना रहेरावपदिकखा खिजारकालेकाले जिणपादहिकिजशपचा पावियासरुमा उलिसकरकमल जाहकर हरिकतणु नपछिवकलसंताणमा रताहमहादेवनाअवरुविमइपरकेवा अरहतहोजाया। कसिकवाणासनिवममिहारोजगुरुदेठकलिंगिपसमें पासश्मश्चामावरलाई पासमणिरुकामको पासश्मश्हरिसंबवलन्ने पारसमजिणपडि कलने णासश्मश्मएणमाषणविणासम्ममापाणणधिणासझमश्वमायणगमणणासमझ करंगवडरमण णासश्मश्चम्मिणिउनी जिणवखरणमारुहाधना मणाजासुकलिकलसेंछिता खासश्मइपररमणिहरना निवविज्ञारिसिविज्ञागामिणि तदादासहपरिसविगामिणाधिनाम इसद्विश्वहश्यामरंधाविसामयासिउजोखाणकसायहिकदलिहिं जावलावासिमाधा
जिससे यह लोक धर्म में प्रवर्तित किया और उस क्षत्रियत्व को क्षय होने से बचाया गया। नरनाथ को अपने कुगुरु, कुदेव और कमुनि के सम्पर्क से राजा की मति नष्ट हो जाती है। स्वर्ण के लोभ से मति नष्ट हो जाती कुल की रक्षा विशेष रूप से करनी चाहिए। पण्डितों के सहवास से कुल को लक्षित करना चाहिए। दर्शन- है। अत्यन्त काम और क्रोध से मति नष्ट हो जाती है। हर्ष और चपलता से मति नष्ट हो जाती है, जिन के ज्ञान और चारित्र के अभ्यास से और दुर्नयों के विनाश से कुल की रक्षा करनी चाहिए। शुद्ध आचार और प्रतिकूल होने पर बुद्धि नष्ट हो जाती है, मद और मान से बुद्धि नष्ट होती है। मदिरापान से बुद्धि नष्ट होती दृढ़तापूर्वक धारण किये गये अणुव्रत-भार से कुल की रक्षा करनी चाहिए। यह कुल सादि-अनादि और उत्पन्न है, वेश्याजन-गमन करने से बुद्धि नष्ट हो जाती है। हरिणवध में रमण करने से बुद्धि नष्ट होती है। जुए में हुआ दिखाई देता है, बीजांकुर न्याय से कुल आया है। भरत ऐरावत आदि के द्वारा कुल नाश को प्राप्त होता नियुक्त होने से बुद्धि नष्ट हो जाती है। परस्त्री में रमण करने से बुद्धि नष्ट होती है, जिन के चरण-कमलों है, फिर समय-समय पर जिननाथ के द्वारा वह किया जाता है।
में पड़ी हुई जिसकी बुद्धि कलि के पाप को स्पर्श नहीं करती उसकी बुद्धि नृपविद्या और ऋषिविद्या में गमन पत्ता-सिर झुकाकर और करकमल जोड़कर इन्द्र जिन का कीर्तन करता है, वे राजकुल परम्परा के करनेवाली होती है और इहलोक तथा परलोक में धरती (या लक्ष्मी) उसकी होती है। विधाता हैं और उनका ही महादेवत्व है ॥५॥
धत्ता-मति शुद्ध होने से धर्ममति बढ़ती है, और धर्म भी मैं उसे कहता हूँ कि जिसका उपदेश
क्षीणकषायवाले केवलज्ञानियों ने विश्व में किया है॥६॥ और भी राजा के द्वारा बुद्धि की रक्षा की जाये और अरहन्त की ही सीख सीखी जाये। मिथ्यात्व के रंग Jain Education international
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