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बना निमु निघोड सतावना ज्ञावयति
निरुसवेयान किउवचनं तर थचान मुणि संघ हो वेजा वजजोउ शि णलत्रि पर सारुत्रि तैविरश्यप क्या परमनन्त्रि का वास सुना रहा रहतमनुपायडरमाणि सब से करइकलिमलिए समप्पु वक्तछुप वोहधम्मैतवष्णु नायंसडरय हा रणाइ खाए हेविसोलह का रणा पापग्न राहणा तेलोय चक्क संख हाल नेपाल वियाई। चारई हरिये ई उडा दिया। संपुष्पा चउचिणउ कालकमेणजिलहउ जग पियरहो तिज यरो नाउगोचते ह को पुत्र देवेषु को संचइकिर एवहुषुषु उतउतसुधारत उतघु दिनत उत घुस खानु आम सदा दिजु लोसहा दि खेभा सहा दिवि हा सहा दि सो महा दिनाव सही हिंसासरे हे सा डर जिय मही हिं। तह का बुद्धि वरचा यदि संतिष्प मात्रनामे बडि पायापु सारिणी अवरखद्धि ना भी त विकिरियरिहि यणिमाम हिमालदिमा सिद्धि सुरसिद्धि श्रद्धा महासिद्धि मोसु सु परायकरण चडिय गुणवा पुचउधकरण नासेसमा दस दो हसमाणु । सिरियमहिहलिसैन रमे हलि देस मन्त्रा
और संवेगभाव (जिनधर्म से अनुराग)। उन्होंने बाह्य और आभ्यन्तर परिग्रह का त्याग कर दिया और मुनिसंघ का वैयावृत्य योग किया। जिनभक्ति, प्रचुर श्रुत और साधुभक्ति, तथा प्रब्रजित लोगों में उन्होंने परमभक्ति की । छह प्रकार के कायोत्सर्ग में वह कमी का आचरण नहीं करता, अपने ज्ञान से अर्हत् मार्ग का प्रकाशन करता है। वह भव्यों के पापमल का शमन करता है। वात्सल्य प्रबोधन और धर्म की स्थापना। इस प्रकार वीतराग भाव से पाप का हरण करनेवाली अर्हन्त की वे सोलह कारण भावनाएँ मोक्ष का आरोहण करानेवाली और त्रिलोकचक्र को क्षुब्ध करनेवाली हैं। उन्होंने उस भाव से इनकी भावना की कि जिससे घोर पाप नष्ट हो गये।
घत्ता -काल-क्रम से उन्होंने सम्पूर्ण व्रत को ग्रहण कर लिया और पा लिया। जगत्पिता तीर्थंकर नामगोत्र का उन्होंने बन्ध कर लिया ॥ ५ ॥
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कौन देव इस प्रकार दैव से परिपूर्ण है? इतना बड़ा पुण्य कौन संचित कर सकता है ? उसने उग्र तप तपा, (और उग्र तप ऋद्धि का धारक बना) घोर तप किया। उसने दीप्ति तप, ऋद्धि तप किया, संक्षीणगात्र तप किया, अमृत- औषधियों, क्ष्वेल औषधियों, विप्र औषधियों, सर्व औषधियों पृथ्वी को रंजित करनेवाली औषधियों से वह मुनि शोभित हैं। उन्हें श्रेष्ठ बुद्धि ऋद्धि (कोठारी की तरह जिन सिद्धान्तों का रहस्य बतानेवाली) वर बीज बुद्धि ऋद्धि (बीजाक्षर ज्ञान से सिद्धान्तों का निरूपण करनेवाली), सम्भिन्न श्रोत्रबुद्धि ऋद्धि (भिन्न शास्त्रों का रहस्य जाननेवाली); पादानुसारिणी बुद्धि ऋद्धि (पद के अनुसार अर्थ जाननेवाली), तनुविक्रिया- ऋद्धि, अणिमा-महिमा लघिमादि सिद्धि, सुरसिद्धि और महान् महानस सिद्धियाँ उत्पन्न हुई। वह आठवें अपूर्वकरण गुणस्थान से नौवें अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में चढ़कर दसवें सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान में चढ़ गये। समस्त मोह समूहों का नाश करनेवाले, श्रीप्रभ राजा की धरती के रसिक,
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