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वक्षो अहिंसापयासो विद्यामागमासाहिला एनिधधम्पयापवरू सिरिसरुवजिण्डिसहारा लय इलस्वङसम्मवरण मचरिकलसंसारहोसारमानालाललितगत सिधवलमत्ता सदसुमित मछ। सतु वदवलद शावकाया पंचक्रिकाम सस्चमनिकाय णाणापंचागश्यपवा रिसिवायचा माहव्याश्याचा खसहावसमितिभिगावातरवरितातिवितिङन णवविहपयव दधम्मयथासा तरवासहमपत्रहडहा अध्याणवार कामावाटचरणाणिनाकरयापिोटजकाहठतणामाण हगवणाणसणविकमणालमहिरणाअजपाजायजारलेशाशलता जिहसहलफनरण का लणरावितिड़पडिष्प वानरचरफपिरिठवाएं। सम्ममण्मुगिणादिमा तत्रिएणविद्यसविरा
तोगत्ततियान यणरमन गरिसरबलदिनदमनकुर्दिसवाहता।
जाबसम्पन्चाय पाहात किंकर घराश्वनारिखकर तरका दिजायानिकाहे अहविमाणदेहिमगवाह लान सास्त्रसमियरतणु पवायुपपझावण्डतएका चुसिरिमाकाश्वविमयाइसमाच्या
सम्मई मापातपाडवायजपातमहिलामाणुवास चरतासातवितिकलाप
शक्ष
वह अहिंसा का प्रकाशन करनेवाला और विज्ञान का आगम है।
मुनि ने जो वर्णन किया, उसे क्रम से सुनकर उसने ग्रहण कर लिया, आर्य ने जिस प्रकार, आर्या ने भी उसी घत्ता-दया से श्रेष्ठ धर्म और ऋषि-गुरु-देव-आदरणीय-जिनका विश्वास करो, तुम सम्यक्त्व गुण प्रकार। को स्वीकार करो; मैंने संसार का सार तुम से कह दिया ॥८॥
घत्ता-जिस प्रकार शार्दुल के जीव मनुष्य ने सम्यक्दर्शन स्वीकार किया, उसी प्रकार सुअर के जीव
ने सम्यग्दर्शन स्वीकार किया। वानर और नकुल के जीव मनुष्यों को भी मुनि ने सम्यग्दर्शन प्रदान किया॥९॥ हे सुन्दर शरीर, धवल नेत्र मित्र ! तुम श्रद्धान करो कि तत्त्व सात हैं । द्रव्य के छह भेद हैं, जीवकाय के
१० छह भेद हैं, अस्तिकाय पाँच हैं और देवनिकाय चार हैं। ज्ञान पाँच हैं, गतिभेद पाँच हैं, मुनिव्रत पाँच हैं, भव्य नरसमूह के द्वारा भक्ति से प्रणमित ऋषि आकाशमार्ग से उड़कर चले गये। वज्रबाहु के वे चारों गृहस्थों के भी पाँच व्रत हैं। लेश्याभाव छह हैं, गर्व तीन प्रकार के जानो, चारित्र्य तेरह प्रकार का है, और मतिवर आदि शुभंकर अनुचर तपकर निरवद्य अध:प्रैवेयक स्वर्ग के अहमेन्द्र विमान में उत्पन्न हुए। उन्होंने गुप्तियाँ तीन प्रकार की। पदार्थ नौ प्रकार के हैं, धर्म के मार्ग दस प्रकार के हैं, सात प्रकार के भय कहे गये लोकश्रेष्ठ अहमेन्द्रसुरत्व और पुण्य के प्रभाव की प्रभुता को प्राप्त किया। वज्रजंघ और आर्यिका श्रीमती, हैं, दुष्टमद आठ प्रकार के हैं, आत्मानुवाद (जीवानुवाद) कर्मानुवाद, चरणनियोग और करणनियोग का उन दोनों समता से अंचित और पूजित होकर मर गये।
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