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सिंडव धम्मुजिजी वह सन्त हो इयन् ॥ अश्रु या विपवेतिशुरु चंद सरवदारयवृंद सा मधुविसुरु धम्मगुरु सिरिहरु बुजिन वरु सुरेंदें | १४ चुमुपदिनिल काठे सिरिहरू विसग्नाउ ससिसूर दामि ददामि दरिनियगिरी समंदरगिरीसम्म उतुंग देहमि सुरदिसिविदेहम्मि विकि नसीमा दे। नयरिसीमादे सहदिडिनरगाड रणिजस्स नरपाड, जोरो सुसं दश जोसिरि वरुवरशा जो कामुपरि हर परणारिरइडरर जोमाणु निमदर मञ्चसंगह जे जणिवेजण हरिस जेनकिना | इदरिस जे लोक निम्म दिन पुरिसह मंदिर मजपनिडविउ मणजे थिरुवि। रुसो मुंगावन सदा इपि किं शुर सहि सुंदरियांदरणाम तदोराप्रणि । सुखरुप प्पिए चायउ तादेगज्ञे सो जाय ते सुविदिणामे
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झवा पर्खेवम्मदवाणे मुणिद्विमयणुभाज जरी चलूघोसचक्कश्री लीलाणिनियतं वेश्म परिषिवपइपिणाम मणोरम जोसिरिमश्हेजीउ ! - समयप सुरमंदिर उदपुणानड पुचमणेोरसाइज २४६
सीमानगरी मुहा अनामा राजाकघ 200 विठत्रोयत्रिः॥
तप करके वह ब्रह्मेन्द्र हुआ। जीव के धर्म ही सबसे आगे रहता है।
धत्ता- बड़े-बड़े लोग भी गुरु को नमस्कार करते हैं। चन्द्र-सूर्य और देवों के द्वारा वन्दनीय ब्रह्मसुरेन्द्र जिसने अहंकार को नष्ट कर दिया है जिसने अपने मन को स्थिर बना लिया है, ने भी देव श्रीधर की धर्मगुरु के रूप में पूजा की ॥ १४ ॥
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श्रीधर भी स्वर्ग से अपना शरीर छोड़कर चन्द्रमा और सूर्यो के द्वीप इस जम्बूद्वीप में, जहाँ इन्द्र जिन तीर्थंकर को ले गया है, ऐसे सुमेरु पर्वत की पूर्व दिशा में विशाल आकारवाले विदेह क्षेत्र की विस्तीर्ण सीमाओंवाली सुसीमा नगरी में शुभदृष्टि नाम का राजा है, जिसके युद्ध में संग्रामदोष नहीं है, जो क्रोध का संवरण करता है, लक्ष्मीरूपी वधू को धारण करता है, जो काम का परिहार करता है, परस्त्रियों में रति से दूर रहता है। जो मान का निग्रह करता है, मृदुता को धारण करता है, जिसने लोगों में हर्ष पैदा किया है,
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परन्तु जो स्वयं अधिक हर्ष नहीं करता, जिसने लोभ को नष्ट किया है, जिसने पुरुषार्थ का आदर किया है,
घत्ता जो रूप, सौभाग्य और गुण में जैसे उर्वशी या इन्द्राणी थी ऐसी उसकी नन्दा नाम की सुन्दर रानी का वर्णन हम जैसे लोगों के द्वारा कैसे किया जा सकता है ? ।। १५ ।।
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वह देव (ब्रह्मेन्द्र) स्वर्ग छोड़कर, उसके गर्भ से पुत्र पैदा हुआ सुविधि नाम के उस युवक से, जो मानो साक्षात् कामदेव था, मुनियों के भी मन में उन्माद उत्पन्न करनेवाली अभयघोष चक्रवर्ती की अपनी गति से हाथी को जीतनेवाली मनोरमा नाम की प्रणयिनी पुत्री से विवाह कर लिया। जो स्वयंप्रभ नाम का देव श्रीमती का जीव था, अनेक पुण्यों का धारण करनेवाला वह स्वर्ग से च्युत होकर मनोरमा का पुत्र हुआ।
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